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________________ ५० अनुसन्धान-५७ पाप प्रकृति दश ए अंतराय नव पणि बीजा कर्मनी थाय चक्षुदर्शनावरण ते जोय नेत्ररोग पडलादिक होय ॥९॥ अचक्षुदर्शनावरणनो भेद निर्बल बीजां इंद्री वेद अवधिदर्शनावरण ते कहइं अवधिदर्शन जेथी नवि लहइं ॥१०॥ चोथु केवलदर्शन नहीं केवलदर्शनावरण ते २४सही निद्रा ते जे जागई सुखि निद्रा निद्रा जागइ दुखि ॥११॥ प्रचला उभां बइंठां उंघ प्रचलाप्रचला हीडतां उंघ थीणद्धी निद्रा पांचमी पाप प्रकृति ए ओगणीसमी ॥१२॥ एहना गुण श्रीजिनमुखि २९भणइं निद्रावशि नर हस्ती हणइं वासुदेवसुं अर्द्धबल थाय पापइं सातमी नरगइं जाय ॥१३॥ वीसमई नीचकुलिं अवतरइं नीचगोत्रउदय इम करइं एकवीसमइं दुर्गति दुखभोग तेह अशाता वेदिनी योग ॥१४॥ बावीसमई मिथ्यात्व मनि रमई साचा देवगुरुधर्म नवि गमई थावरदशकतणी हवइं वात कहतां सुणयो ते अवदात ॥१५॥ थावर ते थिर थानकि काय त्रेवीसमई एकेंद्री थाय हाली चाली न सकई कही थावरनामकर्म ए सही ॥१६।। सूक्ष्म कर्म हवइं चोवीसमइं सूक्षमनिगोदमांहिं जीव भमइं तेहनां सरीर न देखइं कोय अपर्यापतो पंचवीसमइं होय ॥१७|| गाजर मूलादिक जे काय चोथो थावर ते कहवराय अनंत जीवनइं एक ज देह छवीसमो साधारण तेह ॥१८॥ सतावीसमई जीव ढीला अंग अठावीसमई पुरुषारथभंग दोभागी ३०दीठी नवि गमइं दोभागकर्म ते ओगणत्रीसमइं ॥१९॥ घोघरस्वर दुःस्वर त्रीसमई वचन अनादेय एकत्रीसमइं ३१रूडु करतां अपयस होय बत्रीसमइं दस थावर होय३२ ॥२०॥ नरकगतिनइं नरग आउखुं नरगानुपूर्वी नरगत्रिक लखुं एतलई पातक पांत्रीस थाय हवइ निसुणो पंचवीस कसाय ॥२१॥ क्रोध-मान-माया-लोभ अतोल च्यार चोकुं ते थाइं सोल अनंतानुबंधनइं अपच्चखाण प्रत्याख्यान संजलणो जाण ॥२२॥
SR No.229650
Book TitleNavtattva Chopai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
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