SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ कहीइंक थाय कर्म बलवंत कहीइंक जीव तस अंत । जीव कर्मनो एहवो ढाल एक एकनइ छलई ततकाल ॥४॥ कर्मबंधना च्यार प्रकार प्रकृति स्थिति रस प्रदेश अपार । प्रकृति कहीइं वस्तु स्वभाव स्थिति रहिवुं आयुखानो भाव ॥५॥ कडूओ मीठो रस अनुभाग प्रदेश ते दलसंचय लाग । मोदिकनें दृष्टांतइं बंध अथवा वैद्य गोटिका संबंध ॥६॥ कोईक वैद्य वाटइ ओषधी बंधई गुटिका नव नव विधी । तेह तणो ए चिहुं भेद पहिलुं प्रकृति कहुं ते छेद ||७|| कोईक गोली टाले ताव कोईक करे सबलाई भाव । एक श्लेषमानो हरे संता ॥८॥ ख । टिप्पण : ५१.A नित्य निर्जरा B सामायक व्रत उच्चार C संभार क । संमीलितेन १४४ ॥ F कोडि सहीइं नि० Gष्ट पुण पणवीस बहू क । करवाय च्यार क । - D धार क । E इति श्री सयंवर तत्त्वाधिकार षष्टम्मः संपूर्णः ६ ॥ एवं सर्व्व गाथा सह ए६० ॥ नमः १०८ ॥ क ॥ क । - क । H गाथा च्छंदः मागध प्रां. शैलीं चेति ३ | J K संत L 1 नीव करइतस - - - 1 क । नमः १००८ ॥ - क ० कर्म्माकर्म्मः क । P क । Q विभाव R एक गोली क । क । क । - गिलाण्णन्हइं क । M वय बाल० क । N इति सत्तमनिर्ज्जराऽधिकार चोपाई । सर्व्व गा० । १५५ ॥ ७ ॥ ६०॥ क्लीँ क । अनुसन्धान-५७ - क ।
SR No.229650
Book TitleNavtattva Chopai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size130 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy