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कहीइंक थाय कर्म बलवंत कहीइंक जीव तस अंत । जीव कर्मनो एहवो ढाल एक एकनइ छलई ततकाल ॥४॥ कर्मबंधना च्यार प्रकार प्रकृति स्थिति रस प्रदेश अपार । प्रकृति कहीइं वस्तु स्वभाव स्थिति रहिवुं आयुखानो भाव ॥५॥ कडूओ मीठो रस अनुभाग प्रदेश ते दलसंचय लाग । मोदिकनें दृष्टांतइं बंध अथवा वैद्य गोटिका संबंध ॥६॥ कोईक वैद्य वाटइ ओषधी बंधई गुटिका नव नव विधी । तेह तणो ए चिहुं भेद पहिलुं प्रकृति कहुं ते छेद ||७|| कोईक गोली टाले ताव कोईक करे सबलाई भाव ।
एक श्लेषमानो हरे संता
॥८॥
ख ।
टिप्पण :
५१.A
नित्य निर्जरा
B सामायक व्रत उच्चार
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संभार
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संमीलितेन १४४ ॥ F कोडि सहीइं नि०
Gष्ट पुण पणवीस
बहू क ।
करवाय च्यार
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D धार
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E इति श्री सयंवर तत्त्वाधिकार षष्टम्मः संपूर्णः ६ ॥ एवं सर्व्व गाथा सह ए६० ॥ नमः १०८ ॥ क ॥
क ।
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H गाथा च्छंदः मागध प्रां. शैलीं चेति ३
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K संत
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नीव करइतस
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नमः १००८ ॥ - क
० कर्म्माकर्म्मः क ।
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Q विभाव R एक गोली
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गिलाण्णन्हइं
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M वय बाल०
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N इति सत्तमनिर्ज्जराऽधिकार चोपाई । सर्व्व गा० । १५५ ॥ ७ ॥ ६०॥ क्लीँ
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अनुसन्धान-५७
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