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अनुसन्धान-५७
• क प्रति – पत्र-१०, सं. १७६६मा फागण वद-६ना गुरुवारे, सौराष्ट्र देशना पोरबंदिर (पोरबंदर) नगरमां, ऋषि ओधवजीना शिष्य ऋषि हीरजीने पठनार्थे, ऋषि प्रेमजीए लखेली छे । आ प्रतिमां अन्ते अलग अक्षरे 'ऋ० प्रेमजी ओधवणीइं पुस्तक भण्डारे कर्यो' एम लखेला छे । • ख प्रति - पत्र-७, सं. १८१६ श्रावणवद-१ना गुरुवारे, राधनपुरमां लखायेली छे । अने एमां प्रान्ते अलग अक्षरे 'जीर्णगढ संवत १८३० फागण सुदि-११ उतरीया गीरनार । ॐ श्री पूज' एम लखेल छे. • क मां नवतत्त्व चोपइ लखेल छे. • ख मां बाजुमां (हांसियामां) 'नवतत्त्व सज्झाय' एम लखेल छे । • क अने ख प्रतिनी भाषा प्रयोगनी भिन्नताक संज्ञ क प्रतिमां – अन्त्य ओ अने उ ना स्थाने अउ प्रयोग वधु छे. दा.त. करो ना स्थाने करउ, तणुं ना स्थाने तण्णउं. अन्त्य ई ना स्थाने ईय (पाछल य कार) वाळा प्रयोग दा.त. विवरी ना स्थाने विवरीय, अधूरीना स्थाने अधूरीय, हकार युक्त प्रयोग दा.त. समकालिं ना स्थाने समकाल्हइं, इम ना स्थाने इम्मि, जिम ना स्थाने ज्यिम्मि छे । ख संज्ञक प्रतिमां – एकारवाळा प्रयोग बधे छे दा.त. कहई ना स्थाने कहे छे. आवा प्रयोगो पाठभेदमां नोंध्या नथी. • प्रस्तुत कृतिमां कुल २०४ गाथा छ । जेमां जीवतत्त्व - गाथा-१६, अजीवतत्त्व - गाथा-२०, पुण्यतत्त्व - गाथा१७, पापतत्त्व - गाथा-३८, आश्रवतत्त्व - गाथा-२१, संवरतत्त्व - गाथा३५, निर्जरातत्त्व - गाथा-१०, बन्ध तत्त्व - गाथा-१२, मोक्षतत्त्व- गाथा-३५, आ नव तत्त्वना जेटला भेद छे तेने विस्तारथी अर्थ बताववापूर्वक निरूप्या
• संवर तत्त्वनी गाथा २४ पछीनी गाथाओ, निर्जरातत्त्वनी बधी गाथा अने बन्ध तत्त्वनी चोथी गाथा सुधीनी प्रायः २५ गाथा क अने ख संज्ञक प्रतिमां आनाथी भिन्न छे, जेथी ख प्रतिनी ए गाथाओ टिप्पणमां नोंधी छे अने ए