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जून - २०१२
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श्रीवज्रस्वामिजीना युगप्रधानत्वपर्यायनां ३६ वर्षमां ज समाइ जतां होवा छतां, अलगथी गण्यां. मतलब के जो श्रीश्रीगुप्ताचार्यनां १५ वर्षने गणनामां लो, तो त्यार पछी श्रीवज्रस्वामिजीनां (३६-१५=) २१ ज वर्ष गणवां जोइओ; तेने बदले वालभी गणनाकारोओ श्रीश्रीगुप्ताचार्यनां १५ वर्ष गणीने श्रीवज्रस्वामिजीनां ३६ वर्ष गण्यां. परिणामे आ गणना, श्रीश्रीगुप्ताचार्यने गणतरीमां न लेती माथुरी गणना करतां १५ वर्षना वधारावाळी बनी. किन्तु वालभी गणना, श्रीभद्रगुप्तसूरिजी के जेओ ते बन्नेना पुरोगामी युगप्रधान हता, तेओनो युगप्रधानत्वपर्याय माथुरी गणना (४१ वर्ष) करतां बे वर्ष ओछो (३९ वर्ष) मानती होवाथी', बे गणना वच्चेनो आ तफावत १३ वर्ष जेटलो स्थिर थयो के जे श्रीदेवर्द्धिगणिजीनी लेखनपरिषद्ना वर्ष सुधी कायम रह्यो हतो. आ ज तफावत, सूचन उपरना सूत्रमा थयुं छे.
परन्तु, हमणां जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ५, अङ्क ९, पृष्ठ ३३०-३३२मां श्रीहीरालाल रसिकदास कापडियाओ लखेलो ‘पज्जोसणाकप्पना ओक सूत्रनुं पर्यालोचन' ओ लेख जोवा मळ्यो. आ लेखमां श्रीकल्पसूत्रगत प्रस्तुत सूत्रना टीकाओमां करायेला विविध अर्थो अने तेनो साचो अर्थ शुं थई शके ते विशे सरस छणावट करवामां आवी छे. आ सूत्रनो अर्थ तो तेओओ ज जणाव्यो छे के जे अत्रे उपर लख्यो छे. पण बे गणना वच्चे १३ वर्षनी भिन्नता- कारण तेओओ श्रीश्रीगुप्ताचार्यनी गणतरीने बदले जुदुं ज दर्शाव्युं छे -
__ "विशेष आनन्दनी वात तो ओ छे के आ प्रमाणे जे १३ वर्षनो फेर जोवाय छे तेनुं मूळ कारण शुं छे ओ पण आ पुस्तकना (वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना -मुनिश्री कल्याणविजयजी) १४४-१४७ पृष्ठमां विचारायु छे. अनुं तात्पर्य ओ छे के केटलाक विक्रमना राज्यारोहणना समयथी विक्रमसंवत् गणता हता, तो केटलाक राज्यारम्भ बाद १३ वर्षमां लोकोने ऋणमुक्त बनावी जे संवत्सर चालु करायो त्यांथी गणता हता."
अत्रे श्रीकापडिया साहेबे मुनिश्री कल्याणविजयजीना मन्तव्य- जे तात्पर्य दर्शाव्युं छे ते मुनिश्रीना मन्तव्यना अन्यथाग्रहणने आभारी छे. केम के मुनिश्रीना मते तो बन्ने गणना मुजब विक्रमना राज्यारोहणना १३मा वर्षे ज विक्रम संवत्नो आरम्भ थयो छे. परन्तु मुनिश्रीओ देखाड्या मुजब माथुरी गणना