________________ [8] कुमतद्वंदवारणकेसरी मिथ्यातिमिर हरि यमहरी वादीजनना मोड्या मान / श्रीहीर० 4 / / ओशविंश उदयो जगीभाग सूत्रअरथ परंपारीनो जाण, आपी भवीयण समकितदान / श्रीहीर० // धन नाथी जिणि उअरी धर्यो धन कुंरा कुलि तुं अवतर्यो, जिनशासनि जिणई लाधुं मान / श्रीहीर० / / श्री आणंदविमल सूरि महिमावंत श्रीविजयदान भगवंत, श्री हरखविमलसीस करइ गुणगान / श्री हरी. // कलस // प्रधान पंडित महीअ मंडित कुमतिखंडन सुरगुरो गुरुभाव निरमल करी मंगल नारीअपच्छर जयकरो जयविमलकारक भव्यतारक मूरतिमोहन सुरतसे तपगच्छदिनकर संघसुखकर जयो श्रीहीरविजय सूरीश्वरो / / 8 / / इति श्री हीरविजयसूरिनी सज्झाय समाप्त // गणिजयविजयलिखितं || श्री : // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org