________________
वेत्रण स्थळे व्याख्या विस्तृत छे. व्याख्यामां आगमादि ग्रंथोना अनेक साक्षीपाठो पण आपवामां आव्या छे. (जओ श्लोक ४७-४८, २४४-४५नी व्याख्या)
क्यारेक मूळ श्लोकना पाठ करता टीकामां अपायेला प्रतीकनो पाठ भिन्न होय छे. टोका स्वोपज्ञ छे. एटले ग्रंथकारने ज पाछळथी फेरफार करवानो विचार थयो होय एम वनवाजोग छे. अन्य ग्रंथोमां पण आवं बनतं होय छे. अमे ज्यारे टीकागत पाठ स्वीकार्यो छे त्यारे टिप्पणमां एनो निर्देश अने हस्तप्रतोना पाठ आपी दीधा छे. (जओ पृ. १६३ टी. १, पृ. २१७ टी. १, पृ. २१८ टी. १, पृ. २२९ टी. १ वगेरे.)
एक स्थळे एवं बन्यं छे के प्रण श्लोकोनी टीका छे पण मूळ श्लोको नथी. अमे टीकागत प्रतीकोना आधारे मूळ श्लोको गोठवीने चोरस ब्रेकेटमां आपी टिप्पणमा निर्देश कर्यो छे. (जुओ श्लोक नं. ८८-९०, पृ. १४१ टी. १)
एक स्थळे एवं बन्यं छे के मूळ श्लोक (१४७)ना स्थळे पूरो श्लोक नथी. अने टीकामा १४५मी गाथाचं प्रतीक आपी श्लोकास्त्रयः सुखावबोधा एवं एम लखो दीधं छे. आवा स्थळे श्लोकनी पूर्ति करवानं अमारी पासे कोई साधन न होवाथी ते अधूरो ज मूकवो पडयो छे. (जओ पृ. १९३ टी. १)
आवं ज १८०नी टीका पूरी थया पछी अनमः पर्वताकारः' इति श्लोकः सुगम एव (पृ. २२०) लख्यं छे, पण मूळ श्लोको (१७२ -१९९) मां आवो कोई श्लोक छे नहीं. अने अना विना ज अवतरणिकामां (पृ. २१७) जणावेल श्लोकानां सप्तविंशतिः थई रहे छे. एटले आ श्लोक ग्रंथकारे पाछळथी काढी नाख्यो होय तेम बने. (पृ. २०० टी. १)
ग्रंथमा चर्च्य विषयो प्रचलित अने जाणीता छे. अष्टप्रकारी पूजाना क्रम अने प्रकारमा वर्तमानमा प्रचलित कम अने प्रकार करतां फेरफार छे. मूलशुद्धिप्रकरणनी गाथा २१मां पण अहीं ध.र. क. (श्लोक ५०-५८)मा निर्दिष्ट क्रम अने प्रकार मुजब ज वर्णन छे. एटले आ क्रम अने प्रकारनी परंपरा प्राचीन होवानं जणाय छे.
ग्रंथमा के कथामा आवतां विषयोने पष्ट करवा माटे अवतरणो, साक्षीपाठो पण घणां स्थळे आप्यां छे. पांचसोथी वध अवतरणोमा प्राकृत गाथाओनी संख्या मोटी छे. अवतरणोनां मूळ स्थान ज्या ज्यां शोधी शकायां छे त्या त्यां ते ते ग्रंथोना' नाम आदि आप्यां छे. अवतरणोने भिन्न टाईपमा मुद्रित करवामां आव्यां छे. अवतरणोनी अकादारादिसूचि परिशिष्ट ३मा आपवामां आवी छे.
अहीं ध. र. क, मां आवतां अवतरणो मणोरमाकहा वगेरेमां पण मळतां होय
१. विशेष माटे संपादन-उपयुक्त ग्रंथसूचि जुओ. २. जेम के ध. र. क. प. ९६ गाथा ८२, मणोरमाकहा पृ. ३२५ गाथा ९९७.
[६४]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org