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वाचक मुक्तिसौभाग्यगणि कृत स्तवनचोवीसी :
डो. अभय दोशी एक संक्षिप्त परिचय आ चोवीसीनी एकमात्र हस्तप्रत श्री ला.द.प्राच्यविद्यामंदिरमाथी प्राप्त थई छे. १० पत्र धरावती आ हस्तप्रत व्यवस्थित स्वच्छ अक्षरो धरावे छे, परंतु केटलेक स्थळे अक्षरो एकसरखा होवाथी भ्रम उपजावे छे. अंते पुष्पिकामां लिपिकार आदिनुं नाम आदि आपवामां आव्युं नथी. परंतु लखावटनी दृष्टिले प्रत विक्रमना १९मा शतकनी होय एवं संभवित जणाय छे.
वाचक मुक्तिसौभाग्य गणिनो पण कोई परिचय प्राप्त थतो नथी. परंतु तेमनुं 'सौभाग्य' एवं अंतिम नाम तेमना गच्छ तरीके तपागच्छनी 'सौभाग्य' शाखानो निर्देश करे छे. तेमज कृतिमां व्यापकपणे प्रयोजायेली १८मा शतकना स्तवनोनी देशीओने कारणे तेमनो काळ १८मा शतकनो उत्तरार्ध के १९मा शतकनो होवानुं निश्चित करी शकाय छे.
आ चोवीशी भक्तिप्रधान-भक्तिहदयना भावोल्लासथी सभर एवी मनहर कृति छे. कवि पर यशोविजयजी, मानविजयजी आदि कविओनो प्रभाव जोई शकाय, एम छतां कवि हृदयनी सच्चाई तेम ज केटलीक मनोहर नाविन्यसभर अलंकाररचनाओ, काव्यात्मक उक्तिओने कारणे आ चोवीशी एक नोंधपात्र चोवीशी तरीके स्थान पामे एवी बनी छे. आ उपरांत कवि तेरमा स्तवनमां करेलो चारणी शैलीनो कमलबंधनो प्रयोग पण नोंधपात्र छे.
___कविले अभिनंदनस्वामी स्तवनमां परमात्माना प्रभावने वर्णवतां मनहर कल्पना करी छे. कवि कहे छे के, ज्यारथी मारा हृदयमां परमात्मा वस्या छे, त्यारथी चिंतामणिरत्न, कामकुंभ अने कल्पवृक्ष- मूल्य मारे मन क्रमशः पथ्थर, माटी अने काष्ट समान ज थई गयुं छे. तो सुमतिनाथ स्तवनमां चातक-मेघ, भ्रमर-मालती आदि परंपरागत उपमाओनी साथे ज छात्रने मन विद्या अने समदर्शीने मन शांति, नयवादीने मन नय जेवी नाविन्यसभर उपमाओ, आलेखन जोवा मळे छे. छट्स पद्मप्रभस्वामी स्तवनमां परमात्मा साथेनी दृढप्रीति अंगे प्रयोजेलुं दृष्टांत नोंधपात्र छे. कवि कहे छे, कोई शुभ
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