________________
अनुसन्धान-५०
तक्खणि मेल्हवि खाट कवणु देवु अम्ह कवणु गुरो । अम्ह कवण कुल वाट कवण धम्म इह लोग पुणु ॥६॥ कइ घरि कइ पोसाल, लियउ सामाइकु पडिक्कमउ । पच्चक्खाणु प्रह कालि जं सक्कउ तं पच्चखउ ॥७॥
घात (घत्ता) अरिरि संभरि अरिरि संभरि-दव्व सचित्त विगईय । तहं पाणइय वत्थ कुसुम, तंबोल वाहण सयल । सरीर विलेवणइ बंभचेर, दिसि न्हाण भोयणए । जो जाणइं चउद ए पय, नितु नितु करइ प्रमाणु । सो नरु निश्चइ पामिसी, देवहं तणउं विमाणु ॥८॥ सयरह ए सोवु करेवि, धोवति पहिरवि रुवडीअ । पूजहु ए भाउ धरेवि, घर देवालइ देउ जिणु ॥९॥ गंधिहिं ए धूविहि सार, अक्खिहिं पुल्लिहिं दीवइहिं । नेवजिए फलिफार, अट्ठ पगारीय पूज इम ॥१०॥ देवहं ए तणउं जु देउ, पूजहु जाइ वि जिण-भवणि । निम्मलु ए अकलु उभेउ, अजरु अमरु अरहंत पहु ॥११॥ पक्खिहिं ए मुक्खि तुरंतु, राग दोस सवे जो जिणए । रयणिहि ए त्रिहु सोहंतु, नाणिहिं दंसणि चारितिहिं ॥१२॥ मिल्हिउ ए चउहिं कसाय, पंच महव्वयभारु धरु । छव्विहिं ए जीवनिकाय, सदय मनु सत्त भय जो चयइ ॥१३॥ अट्टिहिं ए ग(म?)दिहिं मुक्क, बंभगुपिति नव सीचवइ । आलसी ए खण वि न ढूकु दस दसविह धम्मु समुद्धरणु ॥१४॥ जाइवी ए पोसहसाल, एरिसु दु(सु?)हगुरु वांदियइ । माणुस ए ति किरि सियाल जाहन देउ न धम्मगुरु ॥१५॥ अक्खई ए सुहगुरु धम्मु, सावधाण धम्मिय सुणहु । धम्मह मूलुमरंभु जीवदया जं पालियउ ॥१६।। झूटउ ए मं बोलेह, आलु दियंतहं आलु सउ । देखि वि ए कहइं भूलेहु, परधणु तृणु जिम मन्नियइं ॥१७॥