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जून २०१२
सरलतम छन्द योजना है । गाथा या आर्या छन्द की प्रमुखता होते हुए भी पउमचरियं में स्कन्धक, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति आदि अनेक छन्दों के प्रयोग भी मिलते है, फिर भी ये गाथा/ आर्या छन्द की अपेक्षा अति अल्प मात्रा में प्रयुक्त हुए है । मेरी दृष्टि में इसकी भाषा और छन्द योजना का नैकट्य आगमिक व्याख्या साहित्य में निर्युक्ति साहित्य से अधिक है । इसकी भाषा और छन्द योजना से यह सिद्ध होता है कि इसका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शती से परवर्ती नहीं है ।
पउमचरियं का रचनाकाल
किया है
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पउमचरियं में विमलसूरि ने इसके रचनाकाल का भी स्पष्ट निर्देश
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पंचेव य वाससया दुसमाए तीस वरिस संजुत्ता । वीरे सिद्धिमुवगए तओ निबद्धं इमं चरियं ॥
अर्थात् दुसमा नामक आरे के पाँच सौ तीस वर्ष और वीर का निर्वाण होने पर यह चरित्र लिखा गया । यदि हम लेखक के इस कथन को प्रामाणिक मानें तो इस ग्रन्थ की रचना विक्रम संवत् ६० के लगभग मानना होगी । महावीर का निर्वाण दुसमा नामक आरे के प्रारम्भ होने से लगभग ३ वर्ष और ९ माह पूर्व हो चुका था अतः इसमें चार वर्ष और जोड़ना होगे । मतान्तर से महावीर का निर्वाण विक्रम संवत् के ४१० वर्ष पूर्व भी माना जाता है, इस सम्बन्ध में मैंने अपने लेख “Date of Mahavira's Nirvana” में विस्तार से चर्चा की है । अत: उस दृष्टि से पउमचरियं की रचना विक्रम संवत् १२४ अर्थात् विक्रम संवत् की दूसरी शताब्दी के पूर्वार्ध में हुई होगी मेरी दृष्टि में पउमचरियं का यही रचनाकाल युक्ति-संगत सिद्ध होता है । क्योंकि ऐसा मानने पर लेखक के स्वयं के कथन से संगति होने के साथसाथ उसे परवर्ती काल का मानने के सम्बन्ध में जो तर्क दिये गये है वे भी निरस्त हो जाते है । हरमन जेकोबी, स्वयं इसकी पूर्व तिथि २ री या ३ री शती मानते है, उनके मत से यह मत अधिक दूर भी नहीं है । दूसरे विक्रम की द्वितीय शताब्दी पूर्व ही शकों का आगमन हो चुका था अत:
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