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________________ जून २०१२ हो सकते हैं | पुन: आर्य वज्र का स्वर्गवास वी. नि.सं. ५८४ में हुआ ऐसा अन्य स्रोतों से प्रमाणित नहीं होता है । मेरी दृष्टि में तो यह भ्रान्त अवधारणा है । यह भ्रान्ति इसलिये प्रचलित हो गई कि नन्दीसूत्र स्थविरावली में आर्य वज्र के पश्चात् सीधे आर्यरक्षित का उल्लेख हुआ । इसी आधार पर उन्हें आर्य वज्र का सीधा शिष्य मानकर वज्रसेन को उनका गुरु भ्राता मान लिया गया और आर्यरक्षित के काल के आधार पर उनके काल का निर्धारण कर लिया गया । किन्तु नन्दीसूत्र में आचार्यों के क्रम में बीच-बीच में अन्तराल रहे हैं । अत: आचार्य विमलसूरि का काल वीर निर्वाण सं. ५३० अर्थात् विक्रम की दूसरी शताब्दी का पूर्वार्ध मानने में कोई बाधा नहीं जाती है । यदि हम पउमचरियं के रचनाकाल वीर नि.सं. ५३० को स्वीकार करते हैं, तो यह स्पष्ट है कि उस काल तक उत्तरभारत के निर्ग्रन्थ संघ में विभिन्न कुल शाखाओं की उपस्थिति और उनमें कुछ मान्यताभेद या वाचनाभेद तो था फिर भी स्पष्ट संघभेद नहीं हुआ था । दोनों परम्पराएँ इस संघभेद को वीर निर्वाण सं. ६०६ या ६०९ में मानती है । अतः स्पष्ट है कि अपने काल की दृष्टि से भी विमलसूरि संघभेद के पूर्व के आचार्य है और इसलिए उन्हें किसी संप्रदायविशेष से जोड़ना सम्भव नहीं है । हम सिर्फ यही कह सकते हैं वे उत्तर भारत के उस श्रमण संघ में हुए हैं, जिसमें से श्वेताम्बर और यापनीय दोनों धाराएँ निकली हैं । अतः वे श्वेताम्बर और यापनीय दोनों के पूर्वज है और दोनों ने उनका अनुसरण किया है । यद्यपि दक्षिण भारत की निर्ग्रन्थ परम्परा के प्रभाव से यापनीयों ने उनकी कुछ मान्यताओं को अपने अनुसार संशोधित कर लिया था, किन्तु स्त्रीमुक्ति आदि तो उन्हें भी मान्य रही है । I ९३ पउमचरियं में स्त्रीमुक्ति आदि की जो अवधारणा है वह भी यही सिद्ध करती है कि वे इन दोनों परम्पराओं के पूर्वज हैं, क्योंकि दोनों ही परम्परायें स्त्रीमुक्ति को स्वीकार करती है । यदि कल्पसूत्र स्थविरावली के सभी गण, कुल, शाखायें श्वेताम्बर द्वारा मान्य है, तो विमलसूरि को श्वेताम्बरों का पूर्वज मानने में कोई बाधा नहीं है । पुनः यह भी सत्य है कि सभी श्वेताम्बर आचार्य उन्हें अपनी परम्परा का मानते रहे हैं । जबकि यापनीय I
SR No.229626
Book TitlePaum Chariyam Ek Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size122 KB
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