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________________ जून - २०१२ पउमचरिय की दिगम्बर परम्परा के निकटता सम्बन्धी कुछ तर्क और उनके उत्तर : ___ (१) कुछ दिगम्बर विद्वानों का कथन है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सामान्यतया किसी ग्रन्थ का प्रारम्भ- 'जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा', - इस प्रकार से होता है, आगमों के साथ-साथ कथा ग्रन्थों में यह पद्धति मिलती है, इसका उदाहरण संघदासगणि की वसुदेव हिण्डी है। किन्तु वसुदेवहिण्डी में जम्बू ने प्रभव को कहा- ऐसा भी उल्लेख हैं ।५ जबकि दिगम्बर परम्परा के कथा ग्रन्थों में सामान्यतया श्रेणिक के पूछने पर गौतम गणधर ने कहा- ऐसी पद्धति उपलब्ध होती है । जहाँ तक पउमचरियं का प्रश्न है उसमें निश्चित ही श्रेणिक के पूछने पर गौतम ने रामकथा कही ऐसी ही पद्धति उपलब्ध होती है। किन्तु मेरी दृष्टि में इस तथ्य को पउमचरियं के दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का आधार नहीं माना जा सकता, क्योंकि पउमचरियं में स्त्री मुक्ति आदि ऐसे अनेक ठोस तथ्य हैं, जो श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में ही जाते हैं । यह सम्भव है कि संघभेद के पूर्व उत्तर भारत की निर्ग्रन्थ परम्परा में दोनों ही प्रकार की पद्धतिया समान रूप से प्रचलित रही हो और बाद में एक पद्धति का अनुसरण श्वेताम्बर आचार्यों ने किया हो और दूसरी का दिगम्बर या यापनीय आचार्यों ने किया हो । यह तथ्य विमलसूरि की परम्परा के निर्धारण में बहुत अधिक सहायक इसीलिए भी नहीं होता है कि प्राचीन काल में, श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों में ग्रन्थ प्रारम्भ करने की अनेक शैलियाँ प्रचलित रही हैं । दिगम्बर परम्परा में विशेष रूप से यापनीयों में जम्बू और प्रभव से भी कथा परम्परा के चलने का उल्लेख तो स्वयं पद्मचरितं में ही मिलता है। वही क्रम श्वेताम्बर ग्रन्थ वसुदेवहिण्डी में भी है। श्वेताम्बर परम्परा में भी कुछ ऐसे भी आगम ग्रन्थ हैं, जिनमें ५. ति तस्सेव पभवो कहेयव्वो, तप्पभवस्य य पभवस्य त्ति । वसुदेवहिण्डी (संघदासगणि), गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर पृ. २१ ६. तह इन्दभूइकहियं, सेणियरण्णस्स नीसेसं । - पउमचरियं १, ३३ ७. वर्द्धमानजिनेन्द्रोक्तः सोऽयमर्थो गणेश्वरं । इन्द्रभूति परिप्राप्तः सुधर्म धारिणीभवम् ।। प्रभव क्रमतः कीर्ति ततोनुत्तरवाग्मिनं । लिखितं तस्य सप्राप्य सवेयेत्नोयमुद्गतः ।। - पद्मचरित १/४१-४२ पर्व १२३/१६६ (नोंध : उद्धरण-पाठ काफी अशुद्ध है -शी.)
SR No.229626
Book TitlePaum Chariyam Ek Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size122 KB
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