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June-2003
आ क्षेत्र शत्रुंजयतीर्थनी तळेटी गणायुं छे." आम कही तेमणे पुराणना श्लोको टांक्या (पृ. ६२-६३).
पण राजाना मननो खटको हजी मटतो नथी तेम जोईने तेने वधु प्रतीति कराववा माटे ते लोकोए, ऋषभदेवना देरासरना भंडारमांधी, भरत चक्रवर्तीना नामवाळु अने पांच मनुष्यो भेगा थाय तो ज उपाडी शकाय तेवुं एक 'कांस्यताल' (कांसीजोडु) अणाव्युं, अने राजाने देखाड्युं आ पछी राजाने समाधान थयुं, अने एक वर्ष पछी पाटण आदि क्षेत्रोनां जिनालयोमां पुनः ध्वजा चढाववानी छूट आपी. (पृ. ६३).
आमां ध्वजा न चडाववानो आदेश, पछी चडाववानी छूट ते ऐतिहासिक व्यवहार होवानुं समजाय छे. 'कांस्यताल'नी वात शुं हशे ? ते कल्पनानो विषय छे. आटला आटला युगो पछी पण आवी वस्तु तथा ते प्रासादो ९००-१००० वर्षो पूर्वे सुधी जळवायां होय तेवी कल्पना जरा वधु पडती लागे. जो के त्यार पछी विधर्मी मूर्तिभंजकोए आ धरती पर स्थापत्य, इतिहास, साहित्य, पुरातत्त्व, संस्कृति वगेरेना सन्दर्भोमां जे विनाश वेर्यो छे, तेनी तो कल्पना पण थीजवी मूके तेवी छे. एवं बनी पण शके के घणुं घणुं पौराणिक, हजारेक वर्ष अगाऊ लगी, क्यांक क्यांक सचवायुं होय, अने आक्रमणोना युगमां ते ध्वंस पाम्युं होय.
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(६) 'कामलता' नामक स्त्री- राजराणी, गणिका, महियारणनी करुण कथा आपणा कथासाहित्यमां खूब जाणीती छे. तेना पर रास के ढाळियां प्रकारनी मोटी तथा सज्झाय जेवी नानी गुर्जर रचनाओ बनी होवानुं ध्यानमां आवे छे. ते स्त्रीनो प्रबन्ध पण अहीं भोजप्रबन्धमां वर्णवायो छे. राजा रजवाडीथी वेगपूर्वक पाछो फरतो हतो, त्यारे भीडमां मचेली नास भागने लीधे महियारणनी छाशभरेली माटलीओ फूटी जतां रेलायेला छाशना रेलाने निरखीने खडखडाट हसती ते महियारणने राजा 'रडवाने टाणे हसवानुं प्रयोजन' पूछे छे, तेना जवाबमां ते स्त्री एक ज श्लोकमां पोतानी वीतककथा आम वर्णवे छे :
हत्वा नृपं पतिमवेक्ष्य भुजङ्गदष्टं देशान्तरे विधिवशाद् गणिकाऽस्मि जाता ।
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