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शत्रुंजयमंडन ऋषभदेव-स्तुति
मुनि भुवनचन्द
अपभ्रंश मिश्रित जूनी गुजराती भाषानी आ कृति कुल ऋण हस्त प्रतोना आधारे यथामति शुद्ध करीने अहीं आपी छे. कोई पण प्रतिमां लेखनसंवत अपायो नथी । त्रणे प्रतिओ खंभातना श्री पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन संघना ज्ञानभंडारनी छे । प्रति क्रमांक ३८-५८५ अनुमानतः पंदरमां सैकानी जणाय छे। आ प्रतनी विशिष्टता ए छे के 'न'कारथी शरू थता शब्दोमां आमां 'न' ने स्थाने 'ल' जोवा मळे छे। आ प्रतमां प्राकृत 'शत्रुंजय कल्प' पण छे, तेमां पण आवुं परिवर्तन देखाय छे। जो के बधे स्थले आ नियम सचवायो नथी । २४-३७६ क्रमांकनी प्रतिमां विविध प्रकरणो साथे आ कृति पण संगृहीत छे अने ते संभवतः १६मी सदीमां लखायेली लागे छे । क्रमांक ३८-५८४ नी प्रति १७ मा सैकानी जणाय छे। त्रणे प्रतिओ अशुद्ध छे ।
( ४० )
१. कतु
आना कर्ता तपागच्छे विजयदानसूरिशिष्य 'वासणा' साधु छे. एमनो समय ई. १६मो सैको होवानुं नोंधायुं छे. आ माटे 'जैन गुर्जर कविओ' -१, पृ. ३६३, (प्र. ई. १९८६, म.जे.वि., सं. जयंत कोठारी) तेमज 'गुजराती साहित्यकोश' (मध्यकाल) पृ. ३९९ (प्र. ई. १९८९, गु.सा.प.) द्रष्टव्य छे.
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पहिलउं पणमिअ देव परमेसर सेतुंज - धणीअ पयपंकयरय - सेव रंगिहि विरचिसु तसु तणिअ जिणवर मह नहु ठाणु नाण- झाण-विन्नाण जओ ?”
बालक परिवित्ति बहु भोलिम तुह करिसु तओ ततु ॥१ दिणयर जिम तुम्हि देव निम्मल केवल किरणधर
तिर्हि भुवणिर्हि तिहिं कालि सयल - पयत्थ पयासकर पंचसय तियस मिच्छाईअ पगई य पमुह जोणिलक्ख कुलकोडि तहुवि हु जंपिसु दीणदुह ॥ २ सामि सासोसासि भव सड्ढा सत्तरि सहिअ संपूरंतु निगोदि हुडं अनंत पुग्गल रहिअ
२. ततु ।
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