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अनुसन्धान ५२
पुरुषार्थनुं प्रतिपादन करीने ३'अन्योन्याप्रतिबन्धेन त्रिवर्गमपि साधयन्' आ गुण लोकोना जीवनव्यवहारमा सुपेरे वणायेलो छ अर्बु दर्शाव्यु छे. 'नगरीने निहाळता मेषोन्मेष मळता नथी' (१/१८) आq कडं, मेषोन्मेष तो देवोना न मळे, अटले के आ नगरीनुं दर्शन करनार पोते देवलोकमां छे अq अने लागतुं हशे. अर्थात् आ चम्पानगरी देवनगरी जेवी सुन्दर अने सुशोभित छे..
ढाल-२, कडी- ६ थी १३ वनखण्डनुं वर्णन करती वेळाओ अहीं अटलुं सुसूक्ष्म निरूपण थयुं छे के जेना द्वारा वनखण्डनुं सम्पूर्ण शब्दचित्र चितराई जाय छे. 'कुसुमने भार नमी तरु डाल' (ढा. २/१६) लची पडेला फळोना भारे तो डाळीयो नमी जाय, परन्तु अहीं पुष्पोना भारथी डाळीयो नमी गई छे. डाळीओ-डाळीओ केटलां बधां पुष्पो हशे? आपणे मात्र आंखो मीचीने निहाळीओ, आटलां बधां पुष्पोनी हाजरी वातावरणने परिमल-पूर्ण बनावी देती
हशे.
'वन शुभ शोभाथी, लज्जाणुं नन्दन, सुरगिरि सेवे रे,
ओ वन जोता सुर अनीमेष, वीर ते उपम देवे रे.' (ढा. २/२२) वनखण्डनी शोभा जेटली बधी छे के जेने जोईने नन्दनवन शरमाई गयुं अने ठेठ मेरु पर जईने पोतानु मुख संताडी दीधु. देवोनी आंख पहेला मीचाइ जती हशे, आ वन-दर्शनथी ओमनी आंखो मीचावानुं भूली गइ. त्यारथी देवो अनिमेष कहेवाया हशे. आम कहीने वनशोभाना चित्रने उत्प्रेक्षानी सोनेरी फेममां मढ्युं छे.
ढाल-३ मां परमात्माना प्रत्येक अंगने प्राकृतिक उपमाओ आपीने कवि जणावे छे के प्रभुनो प्रकृति साथेनो सुमेळ, प्रेम अने प्रकृतिकल्याणनी भावना अद्भुत छे.
ढाल-४ दूहा-४/५ 'पहेला प्रभु ओकला हता तो य मारु निकन्दन काढी नाख्युं हतुं, हवे तो विशाळ मुनिसैन्यनी साथे आवी रह्या छे. आ समाचार सांभळीने भयथी कंपती निद्रा लोको पासेथी भागी गइ.' 'प्रभुना आगमननी राह जोता लोकोने निद्रा आवती नथी.' आ सामान्य हकीकत सजाववा सजीवारोपणनुं घरेणुं वापर्यु छे. निद्रा भयभीत थईने बिचारी भागी गई-आ सांभळतां करुणरसनी ३. कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचितम् योगशास्त्रम् - १/५२.