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अनुसन्धान ५२
प्रस्तुत रचना कविश्रीओ संवत १८६४ मां करी छे. आगम ज्ञानने कविओ कविताना सुन्दर वाघा पहेराव्या छे. आगमिक प्राकृत भाषा सहज, सरळ अने सुन्दर छे. छतां समयनी धारामां तेनो परिचय घटता अत्यारे आपणा माटे समजवी मुश्केल पडवा मांडी छे. ओ मुश्केलीने दूर करी अहीं सरळ भावानुवाद को छे. जेमके - . रिद्धित्थियसमिद्धा । - छंडी चपलता लक्षमी रहि छे थिर थोभा
हलसय-सहस्स-संकिट्ठ-विकिट्ठ-लट्ठ-पण्णत-सेउसीमा । - निज निज सीमा दूरथी हाली हल खेडो. जुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला । - रूपवती वेश्या घणी वसती वरपेडें. आरामुज्जाण-अगड-तलाग-दीहिय-वप्पिणि-गुणोववेया । - दंपत्ति रमण प्रियंकरी वन वृक्ष लेंहरीयां
अवट तलाव ने वावडी मधुरां जल भरियां ॥ - उत्ताणणयणपेच्छणिज्जा । - मेषोन्मेष मले नहीं पुर जोता निहाली
गोसीस-सरस-रत्तचंदण-दद्दर-दिण्ण-पंचंगुलितले उवचियचंदण-कलसे।
-- थाप्या चन्दन कलशा मंगल गोसीस हाथ चपेटा रे. - पंचवण्ण-सरस-सुरहि-मुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलिए। - पंचवरण सुम ढोक्या
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अणेग-रह-जाण-जुग्ग-सिविय-पविमोयणा । - वेंहल सुखासन पालखीओ रथ मेल्हण थानक जाणुं रे कवोयपरिणामे । - जरत कपोत आहार हुयवह-णिद्धंत-धोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्त-तालु-जीहे । – रक्त कनकमयी तालुउं रसना राती चोल. पणतीस-सच्च-वयणाऽतिसेस-पत्ते । - पांत्रीस वांणी गुणें भर्या. कमलाऽऽगर-संड-बोहए । - जल पंकज दल बोधतो. बहु-धण-धण्ण-णिचय-परियाल-फिडिया । - राज्य रीद्ध छांडी छती. अट्ठ-विणिच्छयहेडं, अस्सुयाइ सुणेस्सामो, सुयाइं निस्संकियाइं करिस्सामो अप्पेगइआ अट्ठाई हेऊ-कारणाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामो । - गुप्त अरथ
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