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अनुसन्धान-५५
उपाध्याय संवेगसुन्दरगणि-विरचिता शीलोदातिकल्पवल्ली॥
- शी.
वडतपागच्छ एटले के तपागच्छनी वृद्धशाला - वडी पोशालना आचार्य जिनरत्नसूरि शिष्य वा. जयसुन्दरशिष्य वा. संवेगसुन्दरे रचेल आ लघु काव्यरचना, शील अर्थात् ब्रह्मचर्यनो महिमा वर्णवती संस्कृत पद्यात्मक रचना छे. अपवादरूप वसन्ततिलका तथा उपजातिने बाद करतां आखं काव्य शार्दूलविक्रीडित तथा स्रग्धरा छन्दोमां रचायेलुं छे.
आ वा. संवेगसुन्दरे सं. १५४८मां मानुष्यपुर (माणसा?)मां 'सारशीखामणरास' रच्यो हतो. सं. १५१९मां तेमणे चोरवाडपुरमा चिन्तामणि पार्श्वचैत्यनी प्रतिष्ठा करावी हती, तेवो उल्लेख 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास'मां प्राप्त छे.
आ काव्यमां, तेना नामनां सूचवायुं छे तेम, शीलविषयक उदाहरणो वर्णववामां आव्यां छे. शील-पालनना उत्तम लाभोनुं वर्णन करीने तेना पालन माटे तेमणे प्रेरणा आपी छे. शीलविहोणा जीवननी निन्दा पण तेमणे भरपेट करी छे. प्रथमनां ४० पद्यो आ ज प्रतिपादनमा रोकायां छे. त्यार पछी ते विषयनां उदाहरणो प्रारम्भाय छे, तेमां नेमिनाथ, मल्लिनाथ, स्थूलभद्रमुनि, जम्बूस्वामी, वज्रस्वामी वगेरे महापुरुषोनां नामो लीधां पछी, सुनन्दा (वज्रस्वामीनी माता), नारदमुनि, सुदर्शन शेठ, मनोरमा (सुदर्शन शेठनां पत्नी), ब्राह्मी, सुन्दरी, सीता, दमयन्ती, सुभद्रा, सुलसा, द्रौपदी, मदनरेखा, नर्मदासुन्दरी, मन्दोदरी, ऋषिदत्ता, मृगावती, अंजनासुन्दरी, चेल्लणा, गङ्गा, वंकचूल, शीलवती, अगडदत्त, कलावती, इत्यादि शीलसम्पन्न जनोनां नाम तथा व्रतदृढतानुं वर्णन करेल छे.
७०मा पद्यथी शील-विराधना करनारानां उदाहरण आरंभाय छे. तेमां - आर्द्रकुमार, रथनेमि, नन्दिषेण, कूलवालक, इन्द्र, द्वीपायन, इत्यादि नामो आलेख्यां छे. ते पछी पुनः शील-प्रशंसा अने कुशील-निन्दानो दोर चाले छे.
एकंदरे शीलनो महिमा गाती आ खूब मजानी, उपकारक रचना छे.