________________
48
अनुसन्धान ३६
ग्रन्थ तेरमा शतकमां थयेला आ. धनेश्वरसूरिओ रचेलो छे, ते पण तेनी प्रशस्ति तथा अन्य साधनो थकी सिद्ध बाबत छे.
आम छतां, परम्परागत मान्यता अवी छे के आ धनेश्वरसूरि ते मल्लवादीगणिना वखतमां थया हता अने तेमनी आ रचना छे. हवे आ ग्रन्थ माटे, सम्भवतः १५ मा शतकमां कोइ अज्ञात पण अभ्यासी मुनिवरे लखेली ग्रन्थसूचि नामे बृहट्टिप्पनिकामां "कूटग्रन्थोऽयं" ओ रीते उल्लेख थयो छे, जे वांचीने अेक विद्वान मुनिजने कहेलुं के आ उल्लेख वहेलो जड्यो होत तो आ ग्रन्थ अर्वाचीन होवानुं पुरवार करवा करेली संशोधनात्मक मथामण में न करी होत.
वधु चर्चा नथी करवी. परंतु आ ओक ज उल्लेख घणी बधी पारम्परिक आस्थाओ उपर प्रश्नार्थचिह्न मूकी आपवा माटे पूरतो पर्याप्त छे. तो शुं आपणे ते ग्रन्थसूचिकार मुनिवरने वखोडी काढीशुं ? तेमनी ते सूचि उपर प्रतिबन्ध लादीशु ?
खरेखर तो ओ सूचि पण कायम छे, अमां ओ उल्लेख पण यथावत् छे; अने छतां जनमानसमां सदीओथी केळवायेली तथा व्यापेली, आ ग्रन्थ प्रत्येनी तथा शत्रुञ्जयतीर्थ प्रत्येनी आस्था पण अक्षुण्ण छे. ___ संशोधन अने संशोधक परत्वेनो समग्र दृष्टिकोण, आथी ज बदलवा योग्य छे. जो मे नहि बदलाय तो ते कारणे थनारी हानि समग्र जैनसंघने हशे, विद्याजगतने हशे, संशोधनविश्वने हशे, इतिहासने हशे, अने तेनी सम्पूर्ण जवाबदारी आवा प्रतिबन्धो लादनाराओनी तथा ते लादवानी प्रेरणा करनाराओनी रहेशे, ते नि:शंक छे.
वस्तुतः जैन समाजने लागेवळगे छे त्यां सुधी, जैन धर्म-दर्शनने सर्वांगीण रीते समजवा माटे जेम आगमोनी अने शास्त्रोनी जरूर छे; तीर्थो, मन्दिरो अने प्रतिमानी जरूर छे; आचार्यादि साधुगण तथा गृहस्थवर्गनी जरूर छे; तेम इतिहासनी अने संशोधनदृष्टिनी पण जरूर छे; तेम शिल्प-स्थापत्यादि शास्त्रोनी पण जरूर छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org