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राग परदु धन्यासी ॥
देवलोकांतिक इम कहि ए
जागो जागो जोगिंद, विषयसुख परिहरु ए । त्रिभुवननि हितकारणि ए, तारणि भवजल एह संजम सहि वरु ए ।
दान संवच्छरि तुं दयां ए उरण कीधो लोक | जय जय सुर करि ए
परिदोल विबुधा सुणिए धन्यासी दमिश्रनु ( ? ) । थ (प्र) भु संज्यम वरइ ए ||१६||
अनुसन्धान ३३
राग धोरणी ॥
सीह तणी परि एकलु, विचरइ देसविदेस 1
घनघाती क्रम खय क्रिया ध्यान सुकल विसेसो रे, केवलश्री वरि निवड मिथ्यात अनेको रे, तिम दूरिं करइ ||१७||
सुरनर किंनर तिहा मिलि, रचइ समोश्रण सार । तिहा बेसी प्रभुजी कहें, धर्म ज च्यार प्रकार रे, त्रिभुवन तारेवा सिद्ध धोरणी जिनराउ रे, विघन निवारेवा ||१८||
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राग केदारा गोडी ॥
साधु साध्वी श्रावक श्राविका, थापिठं संघ उदार रे । मुगतिमारग चलावतु आप दयासिरदार रे ||१९||
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कुमति - राहुनइ सिहारउ ऊगोरी भानु तिंग रे । केदारा गउरी नांटिक करइ, सुरतणी बाली निज अंग रे ॥ शांतिजिनेश्वर सेवीइ ॥२०॥
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