________________
२६
अनुसन्धान-५७
ओसवाल गोत्र कवित्त
- मुनि सुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ
ऊकेश, उपकेश, ओसवाल आदि शब्दो 'ओसवंश' नां ज जुदा-जुदां नामो छे. प.पू.रत्नप्रभसूरिजीए ओसिया नगरना लोकोने उपदेश आपी जैन धर्मी बनाव्या ते ज श्रावको ओसवाळना नामथी प्रसिद्ध थया. प्रस्तुत काव्यमां कविए उपकेश एटले के ओसवाळ वंशनां गोत्रनां नामोनो परिचय आप्यो छे. कृति ऐतिहासिक छे, परंतु अपूर्ण छे. वचली २४-२५-२६ ए त्रण गाथाओ पण पार्नु जीर्ण होई खण्डित थई गई छे.
कर्ता पोते जैन कवि छे तेथी वीतराग परमात्माना चरणमां नमस्कार करी काव्यनो प्रारम्भ करे छे. कविए कृतिमां नामोना प्रास मेळववा सारो प्रयत्न कर्यो छे जो के एम करता क्यांक-क्यांक गोत्र- मूळनाम बदलाई गयुं होय तेवू अमने लागे छे. दा.त. - ठाकुरला, गन्धी... अमे अहीं मूळ कृतिमां कोइपण फेरफार न फरता ते यथावत् उतारी छे. ज्यां-ज्यां गोत्रनुं नाम न समजायु होय त्यां बाजुमां प्रश्नार्थ को छे. कृतिमां मळतां नामो करतां हालमां बोलातां नामोना फेरफार अमारा क्षयोपशम मुजब पाछळ नोंध्या छे. साथे अप्रसिद्ध एवा गोत्रना नामनी सूचि पण मूकी छे. कृतिना सम्पादन माटे हस्तलिखित प्रतनी Xerox आपवा बदल श्रीहेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिरना व्यवस्थापकश्रीनो खूब-खूब आभार. गोत्रना नाम माटे उपयोगी थनार पुस्तक 'श्रीसच्चियाय माताजी'ना सम्पादकश्रीनो आभार.
प्रस्तुत प्रतनुं लेखन प्रायः १८मी सदीमां थयुं हशे. लखनारनी कलम पण व्यवस्थित न होइ अक्षर उकेलता तकलीफ पडे तेवू छे. ऊभा चीरियामां लखाएल काव्यपत्रमा आगळनी बाजु २३ श्लोक छे. पूर्ण छे. पछी थोडो भाग खण्डित छे. पाछळनी बाजु २६मा श्लोकनो थोडो भाग, २७ थी २९ श्लोक तथा ३०मां श्लोक- १ चरण छे. त्यार पछी शिव- ६ गाथा- कवित्त अने अन्य कवित्तो छे.