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December
भावि भगतिं चरम जिनेस्वर, स्तवीओ बहु सुखकारीजी । राजरीधि सुख संपति पामइ, सुणिय को नरनारी जी । आठइ मद जीप्या जीन वीरि, कीधो जगह प्रकासो जी ॥३९॥
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कलस ||
करी प्रकास जिन मुगति पोहोता, वर्धमान नरवीर रे शास्यन जेहनुं आज वरतिं नीरमल गंगानीर रे ||४०||
कडी
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तपगछ साचो देखी राचो वीजड़ सेनसूरि गछधणी । सागणनो सूत ऋषभ पभणइ वीर नांमिं ऋधि घणी ॥४१॥
इती वीरस्तवन संपूरण |
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2003
ईत
नहइसार
लोकांतीक
अशोष
पूखरणि
अतीसहइ
भंगि
दूरभष्य
वीरष
कुअलों
मुख्यमुल
सूर मेगल
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केटलाक शब्दो
नयसार ( महावीर स्वामीनुं प्रथम जन्मनुं नाम)
देवजातिनुं नाम
अशोक (वृक्ष)
पुष्करिणी
अतिशय
भृंग
ईति = उपद्रवो
दुर्भिक्ष
वृक्ष.
कोमल
मुखना मूळथी-मों वडे सुर-देव
मयगल-हाथी
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