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डिसेम्बर २००८
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की घटना का दस आश्चर्यो में गिना जाना क्या इस तथ्य की ओर इंगित नहीं करता ? तीर्थंकर नीच कुलों में जन्म नहीं लेते
गर्भहरण की घटना सम्भवतः जब सर्वसाधारण के बुद्धिग्राह्य न हुई तो एक और कल्पना की गयी । इस बात की घोषणा की गई कि अरहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव कभी तुच्छ, दरिद्र, कृपण, भिक्षु और ब्राह्मण कुलों में जन्म धारण नहीं करते । अवश्य ही यह कल्पना पहले की अपेक्षा कुछ अधिक बुद्धिसंगत जान पड़ती थी, लेकिन फिर भी गर्भहरण की गुत्थी ज्यों-की-त्यों बनी रही । गर्भ-संक्रमण की अन्य सम्भावनाएं
'गर्भ-संक्रमण जैसे अशक्य कार्य को देवके हस्तक्षेप द्वारा शक्य बनाने की कल्पना को शास्त्र में क्यों स्थान दिया गया ?' इसकी ऊहापोह करते हुए सुप्रसिद्ध विद्वान् पण्डित सुखलालजी संघवीने इस प्रश्नका समाधान दो रूप में प्रस्तुत किया है- (१) त्रिशला सिद्धार्थ की अन्यतम पत्री रही होगी जिसका अपना कोई औरस पुत्र नहीं था । स्त्री-सुलभ पुत्रवासना की पूर्ति के लिए उसने देवानन्दा के पुत्र को अपना पुत्र बनाकर रखा होगा, (२) महावीर यद्यपि बाल्य अवस्था से हिंसक यज्ञ और क्रियाकाण्ड-प्रधान ब्राह्मण परम्परा में पले थे, लेकिन किसी निर्ग्रन्थ भिक्षु के सम्पर्क में आने के कारण उनकी त्यागवृत्ति बलवती हो उठी होगी (चार तीर्थंकर पृ. ११०-११) ।
कहने की आवश्यकता नहीं कि यह स्पष्टीकरण सन्तोषजनक नहीं लगता ।
डाक्टर ए. के. कुमारस्वामीने अपनी 'स्पिरिच्युअल ऑथोरिटी एण्ड टैम्पोरेल पावर' (पृ. ३२ का २४ वां फुटनोट) नामक पुस्तक में इस विषय की भिन्न प्रकार से ही समीक्षा की है । उनका मत है कि ऋग्वेद में उल्लिखित यम और यमीको भाई-बहन न समझकर उन्हें आकाश और पृथ्वी अथवा दिन १. कल्पसूत्र २.२२; आवश्यकचूर्णी, पृ. २३९ । बौद्धों की निदानकथा १, पृ.
६५ में कहा है कि बुद्ध क्षत्रिय अथवा ब्राह्मण नाम की ऊंची जातियों में ही जन्म लेते हैं, नीची जातियों में नहीं ।
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