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जून २००९
हैं । जिनमें अनेक प्रकार के लब्धिधरो एवं प्रज्ञाश्रमणों के उल्लेख हैं, किन्तु उनमें भी श्रुतदेवी सरस्वती का कोई उल्लेख नहीं है । विद्वत्वर्ग के लिए यह विचारणीय और शोध का विषय है ।
जहाँ तक मेरी जानकारी है, दिगम्बर परम्परा में सर्वप्रथम पं. आशाधर (१३ वीं शती) ने अपने ग्रन्थ सागारधर्मामृत में श्रुतदेवता की पूजा को जिनपूजा के समतुल्य बताया है । वे लिखते हैं
ये यजन्ते श्रुतं भक्त्या ते यजन्तेऽञ्जसा जिनं । तं किञ्चिदन्तरं प्राहुराप्ता हि श्रुतदेवयोः ॥२/४४॥
मेरी जहाँ तक जानकारी है, दिगम्बर परम्परा में कुन्दकुन्द प्रणीत मानी जाने वाली दस भक्तियों में श्रुतभक्ति तो है, किन्तु वह श्रुतदेवी सरस्वती की भक्ति है, यह नहीं माना जा सकता है। 'श्रुतदेवयोः' यह पद भी सर्वप्रथम सागार धर्मामृत में ही प्राप्त हो रहा है। मेरी दृष्टि में आचार्य मल्लिषेण विरचित 'सरस्वती मन्त्रकल्प' उस परम्परा में सरस्वती उपासना का प्रथम ग्रन्थ है । मेरी दृष्टि में यह ग्रन्थ बारहवीं शती के पश्चात् का ही है ।
जहाँ तक श्वेताम्बर परम्परा का प्रश्न है, मेरी जानकारी में उसमें सर्वप्रथम 'सरस्वतीकल्प' की रचना आचार्य बप्पभट्टीसूरि (लगभग १० वीं शती) ने की है। यह कल्प विस्तार से सरस्वती की उपासना विधि तथा तत्सम्बन्धी मन्त्रों को प्रस्तुत करता है । आचार्य बप्पभट्टीसूरि का काल लगभग १० वीं शती माना जाता है । श्वेताम्बर परम्परा में सरस्वती का एक अन्य स्तोत्र साध्वी शिवार्या का मिलता है इसका नाम 'पठितसिद्ध सारस्वतस्तव' है। साध्वी शिवार्या का काल क्या है ? यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। इसके पश्चात् श्वेताम्बर परम्परा में जिनप्रभसूरि (लगभग १३ वी - १४ वीं शती) का श्रीशारदास्तवन मिलता है, यह आकार में संक्षिप्त है, इसमें मात्र ९ श्लोक हैं । इसके अतिरिक्त एक अन्य श्रीसरस्वती स्तोत्र उपलब्ध होता है, इसमें मात्र १७ श्लोक हैं । इसके कर्ता भी अज्ञात हैं। इनमें बप्पभट्टीसूरि का सरस्वती कल्प ही ऐसा है, जिसमें सरस्वती उपासना की समग्र पद्धति दी गई है । यद्यपि यह पद्धति वैदिक परम्परा से पूर्णत: प्रभावित प्रतीत
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