________________ जून 2009 59 ते सज्जन नवि वीसरे जे सहजें ससनेही / ताप समें करणी परें जे सहजें नवनेह // 21 // दुर देशा(शां)तर सज्जने ते नवि मुकै चित्त / जे अवसरी आगल धरें सिरपंडी मयमत्त // 22 / / हारसिंणगार सोहामणो देषी कामिनी कंत / कुण कारण प्राणेशजी नवि मिलीया एकंत // 23 // वर वेस्या वित्तचारणी देषी थयो ज शोक / सुरजन केरा फूल जिम हावभाव थयो फोक // 24 // निफल तुझ मुझ प्रीतडी उत्तम अतहि अमूल / सज्जन संगम फल विना जिम अंबकेसी फूल // 25 / / कंटक पणि जे गुणभर्या ते आदरमान लहंति / जिम कलीकालै केवडो उत्तम मोल चढंति // 26 / / दुरि थकी रलीआमणा नहीं अंतरगुण संग / तडतडियाना फूल जिम तिणसं कहो कुण रंग // 27 // सुंदर रूप सोहामणो जे अंतर विषवेल / मोटा आफु फूल जिम ते देसांतर मेल // 28 // लघु पणि जे बहु गुण भर्या अंतर सरस सुगंध / बोलसरीना फूल जिम उत्तमसुं संबंध / / 29 / / कोडिकुमदिनी जाति छै न सहकार समान / जे भक्षणथी कोकिला - कंठ लहै उपमान // 30 // वहि आडंबर बहु कीयो नही अंतर गुणलेस / करीर केरा कुसम जिम ते सूं कवण मिलेस 31 / / इति पुष्पमाला चिंतवणी संपूर्ण // लिखतं पूज्य ऋषि श्री 5 अमराजी तत्सिष्य लिखतं ऋ श्री 5 सांमलजी वै. तिकमपठनार्थं संवत् 1756 वर्षे आसु शुदि 10 शनै / मालवादेशे रिणोजीमध्ये शुभं भवतु // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org