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December - 2003
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नेम-राजुल लेख
सं. डो. रसीला कडीआ
प्रस्तुत कृतिनी नकल ला.द.भा.विद्यामन्दिर, अमदावादना त्रूटक हस्तप्रत परथी करी छे. आ माटे हुं उपलब्ध करावनार श्री लक्ष्मणभाई भोजक तथा संस्थानो आभार मानुं छु.
नव भवनी प्रीतिने, मात्र जीवदयाथी प्रेराईने, छांडी जनार श्री नेमिकुमार (जैनोना २३मा तीर्थंकर) अने राजुलने विषय बनावी जैनोमां घj साहित्य रचायुं छे. अहीं पत्र स्वरूपे आ रचना बनी छे, नेमकुमारे रथ पाछो वाळ्यो छे. मनना ओरता मनमां ज रही जतां, राजुल कफोडी परिस्थितिमां मूकाई छे. जे व्यक्ति तोरणेथी ज पाछी फरी छे, तेने पत्र केवी रीते लखवो? लखे तो पहोंचाडाय केवी रीते ? पण पुराणी प्रीतनुं जोर एवं छे के लग्नना मांडवे तरछोडायेली, समाजमां आबरू गुमावेली कन्या पत्र लख्या विना रही शकती नथी. सूनी शय्या विरहनी वेदनाने भडकावे छे. अनेक विनवणीओ, पोतार्नु एकनिष्ठपणुं अने एकने मूकी जे बीजी करे छे ते आखरे छेह आपनारु छे एम जणावी, संसारना तबक्का दर्शावे छे अने कहे छे के वृद्धावस्थामां व्रत अने योग थाय. पत्र-कागळने मित्र बनाववा कहे छे अने अंते कवि कहे छे के आवा राजुल नेम शिवपुर-मोक्षनगरीमां मळ्या त्यारे ज तेना मननी आश पूरी थाय छे. आम अतिसुंदर भावोथी गूंथेल आ रचना नेम राजुलविषयक साहित्यमा उमेरारूप छे.
अंते कविओ पोताना गुरु श्रीविनयविजय उपाध्यायना उल्लेख साथे पोतानुं रूपविजय नाम जणाव्युं छे. रचनावर्ष कृतिना संपूर्णतासूचक वाक्य पछी आपवामां आव्युं छे ते प्रमाणे आ कृति संवत १८५६, मार्गशीर्ष सुदि ८ ना रोज लखाई छे.
-xस्वस्ति श्री रैवतगिरें, वाह्ना नेमजी जीवन प्राण रे लेख लखुं हुं से करी ? राणी राजुल चतुर सुजाण ॥१॥
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