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अनुसन्धान ३६
भुजङ्गप्रयात-१,१२,१७; अनुष्ठुब्-२; शार्दूलविक्रीडित-३,४,५, ११,१५,१९; इन्द्रवंशा-६; स्रग्धरा-७,८,१४,२२,२४; आर्या-९; वसन्ततिलका१०,१६; १३वा पद्य अस्पष्ट है; उपजाति - १८; १९वा -२०वा कड़खा राग में गीयमान देशी-'भावधरी धन्यदिन आज सफलो गिणं' में है और २३वा पद्य मन्दाक्रान्ता छन्द में है ।
इस तीर्थमाला स्तव की प्रति राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के संग्रहालय में ग्रन्थाङ्क २२७२८ पर विद्यमान है । लम्बाई चौड़ाई २१ x ८.५ सेंटीमीटर है । लेखनकाल अनुमानतः १६वीं शताब्दी है । लेखन प्रशस्ति नहीं है । पत्र संख्या २ है । प्रथम पत्र के प्रथम भाग पर और द्वितीय पत्र के प्रथम भाग पर स्वस्तिक चित्र भी अंकित हैं । जिसमें श्लोक संख्या २ और १७ के अक्षरों का लेखन है । पत्रों के हांसिए में पद्य संख्या ९ और पद्य संख्या १३ भिन्न लिपि में लिखित हैं। कई अक्षर अस्पष्ट हैं। पद्य ६ के प्रारम्भ के दो अक्षर अस्पष्ट हैं ।
जहाँ केसरियानाथ (कालियाबाबा) और राणकपुर जैसे विश्वप्रसिद्ध तीर्थस्थान हों, जहाँ श्रीजगच्चन्द्रसूरि जैसे आचार्यों को तपाबिरुद मिला हो अर्थात् जहाँ से तपागच्छनाम-प्रारम्भ हुआ हो, जहाँ खरतरगच्छ की पिप्पलक शाखा के जिनवर्द्धनसूरि, जिनचन्द्रसूरि, जिनसागरसूरि का चारों ओर बोलबाला हो, जहाँ महोपाध्याय मेघविजयजी का प्रमुख विचरणस्थल रहा हो, जहाँ नौलखागोत्रीय रामदेव और राष्ट्रभक्त महाराणा प्रताप के अनन्य साथी दानवीर भामाशाह जैसे जिस राज्य में वित्तमन्त्री रहे हों । जहाँ अधिकारी वर्ग में जैन मन्त्रियों में देवीचन्द्र महेता से लेकर भागवतसिंह महेता रहे हों, जहाँ बलवन्तसिंह मेहता जैसे स्वतन्त्रता सेनानी रहे हों और पुरातत्त्वाचार्य जिनविजयजी जैसे इस भूमि की उपज हों उस मेवाड़ प्रदेश की जैसी प्रसिद्धि जैन समाज में होनी चाहिए वैसी नहीं रही ।
लीजिए, अब पठन के साथ भावपूर्वक तीर्थवन्दना कीजिए :
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