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अनुसन्धान ३६
इस स्तव में इनके प्रौढ़ पाण्डित्य के साथ लालित्य, माधुर्य और प्रसाद गुण भी प्राप्त हैं ।
नामकरण एवं तीर्थपरिचय - मेदपाट अर्थात् मेवाड़ देश के तीर्थस्वरूप जिन-मन्दिरों की यात्रा एवं वन्दना होने से इस स्तव का नाम भी मेदपाट देश तीर्थमाला रखा गया है । इस तीर्थमाला का परिचय इस प्रकार है :१. कवि ने प्रथम पद्य में चौवीस तीर्थङ्करों को नमस्कार कर देखे हुए
तीर्थों की तीर्थमाला में वन्दना की है। २. इसमें 'वामेय' शब्द स्वस्तिक चित्र गर्भित पार्श्वनाथ की स्तुति की
इसमें नागहृद (वर्तमान में नागदा) स्थित नवखण्डा पार्श्वनाथ के मन्दिर का वर्णन किया है । साथ ही कवि नागहृद में ११ जैन मन्दिरों का उल्लेख भी करता है जिनमें शान्तिनाथ और महावीर आदि के मन्दिर मुख्य हैं । जिनमन्दिर में वाग्देवी अर्थात् सरस्वती देवी की मूर्ति का भी कवि उल्लेख करता है। इसमें देवकुलपाटक (वर्तमान में देलवाड़ा) में हेमदण्डकलशयुक्त चौवीस (चौवीस देवकुलिकाओं से युक्त) तीन मन्दिरों का वर्णन करता है, जिसमें श्री महावीर, ऋषभदेव और शान्तिनाथ के मन्दिर हैं । यहाँ कवि कहता है कि भगवान् शान्तिनाथ गुरुधर्मसूरि द्वारा भी वन्दित हैं अर्थात् उनके द्वारा प्रतिष्ठित है । इसमें आघाटपुर (वर्तमान में आहाड़) जल कुण्डों से सुशोभित हैं; विद्याविलास का स्थान है और जो माकन्द, प्रियाल, चम्पक, जपा
और पाटला के पुष्पों से संकुलित है । वहाँ १० जिनमन्दिर हैं । जिनमें पार्श्वनाथ, आदिदेव, महावीर के मुख्य हैं । इसमें प्रारम्भ के दो अक्षर पढ़ने में नहीं आ रहे हैं । सम्भवतः ईशपल्लीपुर (वर्तमान में ईसवाल) में विद्यमान विक्रम संवत् ३०० की अत्यन्त पुरातन श्री आदिनाथ प्रतिमा को निरन्तर नमस्कार करता है।
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