________________ अनुसंधान-२१ पहोंचाडे / " . स्तोत्रनी शरुआतमां सिरिवज्जसेणपणयं ए पद छ / ते उपरथी एवं अनुमान थई शके छे के आ स्तोत्रनी रचना कोई वज्रसेनमुनिना शिष्य मुनिए करी हशे / अलबत्त, जैन परंपरामां वज्रस्वामिना शिष्य वज्रसेनमुनि प्रसिद्ध छे ते नोंधवा लायक छ ! आ स्तोत्रनो रचना संवत् जणायो नथी / क्रियावादि-आदि 363 पाखण्डस्वरूप स्तोत्र सिरिवज्जसेणपणयं तणयं सिद्धत्थ-तिसलदेवीणं / पाखंडतिमिरनासण-सूरं वीरं नमसामि // 1 // सामी ! तुह मयरहिओ भोलविओ हं कुमग्गरूवेहिं / पाखंडविसेसेहिं तिसयतिसट्टेहि ते य इमे // 2 / / असीयसयं किरियाणं अकिरियवाई होइ चुलसीइ / अन्नाणीण सत्त(त)ट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा / / 3 / / अस्थि जिओ सो परओ निच्च-अणिच्चो य कालओ निअओ / संसहावेसर-आया नव-पयगण असीयसओ किरिया // 4 // नत्थि जी(जि)ओ सौ परंओ काल-जइच्छा-नीअं सहाँवओ / ईसरे-आंया सगतत्तसंगुणा किरिय चुलसीई // 5 // सर्य-असंयो-भय-वर्तव्य-सयवत्तव्यो य असर्यवत्तव्यो / तदुभयवत्तव्वजी(जि)ओ नवपयगुणिया य तेवट्ठी // 6 // सर्यभाव-अर्सयभावा तर्दुभय-अवत्तव्वभाव-उप्पत्ती / इय चउजुअ सत्तठी भेया अन्नाणवाईणं // 7 // मण-वयण-कायदाणे सुर-निव-जइ-नाइ-थैर-अंवमेसु / पिय-माइसु अट्ठ चउगुण बत्तीस विणयवाईणं / / 8 / / इय तिसय-तेवडा पाखंडा च(य) जं कुग्गहगहीया / तं कुण जह मं सामी पुणो वि बाहंति नो एए // 9 // // इति श्रीस्तवनसम्पूर्णम् / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org