________________ 36 // 49 // // 51 // जय सयल लद्धिगोयम दढ व्वयत्तेण थूलभद्द चिरं / तित्थ पभावण महु खीर सावि वाणीए वइरपहो अप्पडिबद्धविहारं धीरं गंभीरमवि तुमं काउं / पवण सुमेरु समुद्दे निरत्थए निम्मवितेण 1 // 50 // असरणसीलेण धुवं कयगोणणा पयावइणा / चेयब्भासजडत्तं तहा थेरत्तं च सव्वचियं विक्कमनरेस राउ दसहिय गएसु वासाणं / चित्त कसिणट्ठमीए तुह जम्मो मूलरिक्खंमि गब्भा अट्ठमवासे दिक्खा फग्गुण वलक्ख दसमीए / चउदसमे सूरिपयं कत्तिय सिय तेरसी दिवसे // 53 // चंद कुल कुवलइंदो संखा मच्छरि गुणंबुनिहिणो ते / कं गुणबिंदुं गिन्हउ मह वाणी चडयचंचुव्व अइनिविड़ जडते वि हु वीडं मुत्तूण भत्तिनडिएण / इय किंपि थुओ जिणवइमुणिंद तं होसु मह सुहओ // 55 / / // इति श्रीमज्जिनपतिसूरि सुगुरूणां पंचासिका समाप्ता / / // 52 // // 54 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org