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April-2003
51 छइ । तेहनउ स्वरूप विचारइ ते कहइ छइ । ए लोक चउद राज उंचो छइ । तिणमई सात राज अधोलोक छइ । अनई विचइ अढारइसइ योजन मनुष्यलोक त्रिछो लोक छइ । ते उपरि कांइक उंणऊं सात राज ऊर्ध्वलोक छइ । ते मांहि देवता वैमानिक सर्व अनइ उपरि सिद्धसिला सिद्धक्षेत्र छइ । इम लोकमान छइ । ए लोकनो संस्थान वैशाख छइ । अनंतइ कालमइं आपणइ जीवइ संसार भमतइ सर्वलोक जन्ममरण करी फरस्यउं छइ । एहवउं जे ध्यान ते संस्थान-विचय धर्मध्यान कहीजइ । ए धर्मध्यानना च्यार पाया कह्या । ए धर्मध्यान चउथा गुणठाणाथी मांडी सातमा गुणठाणा ताई छड् ।
हिवइ शुक्लध्यान कहइ छइ । शुक्ल कहतां निर्मल शुद्ध परिणाम आलंबन विना ते शुक्ल ध्यान कहीजइ । ते शुक्ल ध्यानरा पाया च्यार छइ । पृथकत्ववितर्क सप्रविचार ।१। एकत्ववितर्कअप्रविचार २ सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति ३ । उच्छन्नक्रियानिवृत्ति ४ ए चार भेद छइ ।
तिहां पहिलो पृथकत्ववितर्कसप्रविचार । जीवसुं अजीव जुदा करणा वितर्क कहतां गुणपर्याय विचारइ । सप्रविचार कहतां आपरी सत्ता ध्यावइ ए पृथकत्ववितर्कसप्रविचार जाणवो । ए पायो आठमइ गुणठाणइ सूं मांडी इग्यारमइ तांई छइ ।१।
__ हिवइ बीजो एकत्ववितर्कअप्रविचार कहइ । जे जीव आपरा गुणपर्यायरी एकठा करी ध्यावइ । जीवना गुणपर्याय जीवसुं एक ज छइ । अनइ माहरो जीव सिद्धस्वरूप एक छड् । एहवउं ध्यान ते एकत्ववितर्कअप्रविचार जाणवो । ए पायो बारमइ गुणठाणइ ध्यावइ । इण ध्यानसूं घनघाती च्यार कर्म खपावइ । निर्मल केवलज्ञान पामइ । पछी तेरमइ गुणठाणइ ध्यानंतरिका तेरमइरइ अंतर चउदमइ ते दोय पाया ध्यावइ ।
तिहां चीजो सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती कहइ छइ । सूक्ष्म मन वचन कायाना योग रूंधइ । शैलेशीकरण करी अयोगी थाय ते जे अप्रतिपाती निर्मल परिणाम ते सूक्ष्म प्रतिपाती ध्यानं जाणवो । इहां सत्ता पच्यासी प्रकृति रही ते मांहि बहुत्तरि खपावइ ।।
चउथउ उच्छिन्नक्रियानिवृत्ति कहइ छइ । जे योगनिरोध कीयां पछी तेरइ प्रकृति खपावीनइं अकर्मा थाय । सर्व क्रियासू रहित थायइ ते समुच्छिन्न
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