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ऑक्टोबर २००२
ससहरकरहरनिय (य) कित्तिपूरियभूमंडल,
बहुविहलद्धिसमिद्धिसिद्ध-सरणागयवच्छल । रत्तुप्पलसमपाणिपायजुयलक्खणसोहण,
नंद मुणीसर मुणियविस्स विसमायुधचूरण ||२||
कुमयपरुवगविविहवाइकरिभेयणपणमुह,
विणयजुत्तनयसीसराय दूरीकयभवदुह ।
कसमलनासणपवधम्मदेसणकरसायर,
पणमह सिरिगुरु भवियलोय भत्तिहिं अइमणहर ||३|| वाणिविणिज्जिय अमयखंड - पावियबहुमंडल मोहमहाबलफलयवायु म (मु) णिजण आखंडल | कयछव्विहजी (जि) यताण माणभंजण भवतारग जय जय मुणिवर जि (जी) यमाय जिणआगमपारग ||४||
दुद्धरभावमहारिवार अग्गंजिय-रंजियवरमाणयभूपालमाल सिंधुरगयगामिय ।
सिद्धिरमणिकयनिय (य) चित्त चारितविभूसिय
गत्तसुसत्त- जईसपाय पणमउ (ह) बहुभत्तिय ॥१५॥
पंचसमइसंजय नियमइनिज्जियसुरगुरु चत्तभया ऽऽमयरहियअंग तियगुत्तिहिं सुंदर । पंचिदिवसकार तारसमलछि(च्छि) अलंकिय को न हु पणमइ तुह मुणीस ! विगहाइविमुक्किय ||६||
अंतिमजलनिहितुल्लमुल्लगं भीरिमसंजय
मुणिजणपालियआण भाणुसम महीयलि विस्सुय । दस - अडदोसविमुक्त रोसदावानलजलहर मेरुमहीधरधीर वीरसामियनयगणहर ॥७॥
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