________________ 66 अनुसन्धान-३१ इहलोअ-परलोअभउ कट्ठदुट्ठगहगण विणासइ / / वम्माएविहि-अंगरुह जिणवर विग्घविणास / कमठमहासुरदप्पहर सुविहाणं तुह पास ! // 23 // चलणि चालिउ मेरुसिहरग्गु खिल्तई संगमउ गयणमग्गि वड्र्युत निज्जिउ / नियठाणह गयउ सुरु मुंठिघायजज्जरिउ लज्जिउ / / एह परक्कम अतुलबल बालत्तणि तह वीर ! सुयसिद्धनराहिवह सुविहाणं तुह वीर ! // 24|| जे सुसावय-साहु वरचित्त सुपसत्थ सुपसन्नमण निसिविरामि थिरु करिवि नियमणु / चउवीसहं तित्थंकरहं सुप्पभाई जे थुणई अणुदिणु // ते संसारमहाजलहि उत्तरइ अप्पाणु / पावइ दुक्खह खउ करवि संति भद्दु कल्लाणु // 25 / / इति श्राविकाणां चतुर्विंशति नमस्कार // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org