________________
[46]
'अरण्यकेतु' राजा हूउ लिइ देश पदंड ॥ उत्तर पूरव पश्चिमई ए साधंतु नरनाह दक्षिण पासइं आवीउ ए नि० । गूजर धरतीमाहिं । म० ॥३॥ कर्मविशेषई देहमाहिं उप्पन्ना रोग । कुष्ट अढार करई क्लेश लिई तेहनो भोंग ॥ आधि अधिक वाधि नरिंद तनु आकुल थाइ ॥ भूख तरस भूपतितणी निद्रा वली जाइ ॥ सकल वैद्य तिहिं तेडीइ ए औषध करई अनेक जाण-जोसी सवि पूछी[इ] ए। नि० । रोग न लागइ टेक । म० ॥४॥ कटक अवाटी रहिउ राय अति आरति आणइ । तिणि दुखि सहुइ अदन-अरथि नवि बइसइ भाणइ ।। तउ प्रधान इंम वींनवइ सुणि जगदाधार । सोरठदेसह मंडलउ स@जय सार ॥ इंहां आसन तीरथ अछइ ए दीठइ दुरगति दुरि टलइ वलइ वान देहना ए 1 नि० । अवर न एह सम कोइ । म० ||५|| एक कोडाकोडि आठ लाख आठ सहस उदार । भरहादिक नरवर कर्या सेर्बुज उद्धार । पूरव नवाणुं रिसहदेव पुहता विहरंता । जिणहर जिणपडिमा असंख वली सिद्ध अनंता II पुंडरीक पंच कोडि सिउं ए द्रविड वाल दस कोडि मुगति गइ एणइ तीरथिइं ए। नि० । अनंती कोडाकोडि । म० ॥६॥ तीरथमहिमा सुणी राय तव यात्रा आवइ । सात क्षेत्र वित वावतु कलि सोह चडावइ ॥ पहिलं प्रथम जिणंद पाय भेटइ सुविचार | स्नात्र महोत्सव आरती मंगलेवु सार ॥
चैत्यवंदन करी नाट रुप वित वावइ भूपाल धजारोप जिणमंदिरि ए । नि० । देई पहिरइ माल । म० ॥७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org