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अनुसन्धान ३५
वर्णन होय तेनो ज अनुवाद करवो ए आ प्रकारनी रचनानी आवश्यक शरत होय छे, जेने कवि बराबर अनुसर्या छे. २०मी ढाळमां (तथा ते पहेलांनां काव्योमा) कविनी प्रशस्ति छे, अने ते पछी 'कलश' नी ढाळ छे. छेक छेल्ले, पूजा पत्या पछी दृष्टिवादशास्त्रनी तत्त्वगर्भित आरती छे, जे अध्यात्मरसिक जिज्ञासुओने खूब रुचिकर बने तेम छे.
* रचनाना प्रारम्भे 'चारित्रपार्श्वजिनेभ्यो नमः ' तेमज 'प्रणमुं संयमपास जिण' अवां वाक्य लखीने कविए पोतानुं नाम पण सूचव्युं छे, साथे पार्श्वनाथ भगवाननुं एक नवुं नाम पण निरम्युं छे. * कवि संस्कृतना विशेषज्ञ छे तेवुं तेमणे प्रत्येक पूजाना अन्तमां आपेल संस्कृत काव्यो वांचतां प्रतीत थाय छे. * संख्या जणाववा माटे कवि ठेरठेर खास संज्ञाओ ज प्रयोजे छे. दा.त. ७ माटे नग, ८ माटे इभ वगेरे; ते खास ध्यानार्ह छे.
खरतरगच्छना जिनराजसूरि, तेमना पाठक रामविजय, तेमनी परम्परा क्रमशः सुखहर्ष (?) पदमहर्ष कनकहर्ष महिमहर्ष चित्रकुमार → निधिउदय (के उदयनिधि ? ) → चारित्रनन्दी आम पंक्तिओ परथी उकले छे. आमां क्षति होय तो सुधारी शकाय संवत १८९५ मां आ पूजा कविए रची छे ते तेमणे ज नोंध्युं छे.
निजी संग्रहनी १२ पत्रोनी एक प्रतिना आधारे आ सम्पादन करेल छे. अन्तमां कोई लेखकनो तथा लेखनवर्षनो उल्लेख नथी, तेमज लखाण शुद्धप्राय छे, ते जोतां कर्तानी स्वहस्तलिखित आ प्रति होय तो बनवाजोग छे. केवल परिभाषिक शब्दावलीनो विनियोग आमां थयो होवाथी शब्दकोश आपवानुं जरूरी नथी मान्युं.
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श्रीचारित्रनन्दिविरचित चतुर्दशपूर्वपूजा
श्री चारित्र पार्श्वजिनेभ्यो नमः ॥ अथ चतुर्दश पूर्वपूजा ॥
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