________________ 26 अनुसन्धान 32 गौमुत्रमाहे चोवीस पोहर, समुछिम जीव उपजे ते जोर / / सोल पोहरनी भेसनी नीती मांहें, समुर्छिम जीव उपजे ते माहे // 27 / / द्वादश पोहर बकरी नीति मांहें, आठ पोहर गाडरनीती ज्यांहें एहमां समुर्छिम उपजे सही, एह बात गुरुमुखथी लही / / 28 / / ए सुतकनो कह्यो विचार, थोडामांहें भाष्यो सार / सुतकविचार आगममांहे कह्यौ, जिनेश्वरमुखथी सुधो लयौ / / 29 / / सोहमसुद्धपरंपरा जांण, तेजे करी दिपें जिम दिनभाण / श्रीअचलगछे वांदु अणगार, श्रीपुंण्यसिंधुसूरीश्वर सार // 30 // भणे सांभलें जे नरनार, चाले ते तो शुद्धाचार / / अनुक्रमें अमरविमांने सोहाय, रयण आभुषण धरी मुक्तं जाय // 31 / / संवत ओगणीश छीलोतरा (1906) सार, श्रावणकृष्ण पंचमी कही हितकार / श्रीजखौबिंदर चोमासुं करी, चोपई सुतकनी कही थिर करी // 32 // श्रावक श्राविका पालस्ये जेह, श्रीजिन आणांइं चाले तेह। सर्वारथसिद्धतणां सुख सार, वली मुक्तितणां सुख लहेस्य निर्धार // 33 // || इति श्रीसुतकनी चोपई संपुर्ण / / कडी क्र. कठिन शल्दो अर्थ जुगप्सनीय- जुगुप्साजनक 11.12 शब्द दुगंछनीक सुधा पडिकमण मृत्युक वीहाया छाली समुछिम नीती प्रतिक्रमण जैन धर्मनी आवश्यक किया मृतक/मरनार वींयाय, प्रसूति करें बोकडी / घेटी स्वयमेव उद्भवतां जन्तुओ मूत्र / लघुनीति 9. इति श्रीसुतक छंद संपूर्णम् / संवत् 1906 श्रावण वद 5 तिथौ / / अ. || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org