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June-2005
श्रीपुण्यसागरसूरिकृत सूतक चोपाई
सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
सृतक एटले जन्म तेमज मृत्युना अवसरे पाळवामां आवतो एक रिवाज. आ रिवाज भारतवर्षमा हजारो वर्षोथी परम्परागत प्रचलित/स्वीकृत छ. जेना घरमां पुत्रादिनी प्रसूति थई होय अथवा मृत्युनी घटना घटी होय. तेनाथी देवपूजा/ जिनपूजा न थाय, तथा तेना घरनो आहार मुनिओथी न लेवाय - आवी शास्त्रमान्य परम्परा छ; अने तेना नियमो केवा केवा होय छे तथा ते नियमो अंगेनो निर्देश कट, शास्त्रग्रन्थमां सांपडे छे, तेनुं वर्णन आ चौपाईमां थयुं छे.
केटलाक लोको सूतकमां मानता नथी. तो पश्चिमी संस्कारना प्रभावमां आवेलो वर्ग वळी आ बधी बाबतोने अन्धश्रद्धा-वहेम वगेरे-रूपे विचारे छे. ते बन्ने प्रकारना लोकोने माटे शास्त्रानुसारी आ चौपाई घणी मार्गदर्शक बनी शके.
रजस्वला स्त्रीओ अंगेनी जे शास्त्रीय मान्यता तथा परम्परा छे, तेनुं पण आमां निरूपण थयुं छे. आजे आ बाबतनी मर्यादा ज्यारे नामशेष थवा जई रही छे, त्यारे ते मर्यादा केटलीबधी शास्त्रोक्त तथा अनिवार्य छे ते समजवामां आवी रचना घणी उपकारक थाय तेम छे.
___ अंचलगच्छीय आ. पुण्यसागरसूरिए सं. १९०६ मा जखौ (कच्छ) बन्दरना पोताना चातुर्मास दरम्यान आ चौपाई रची होवानो उल्लेख कडी-३०३२ मां छे.
अचलगच्छ ज्ञानभण्डार-मांडवी-कच्छमांथी प्राप्त थयेल बे प्रतिओने आधारे आ सम्पादन करवामां आव्यु छे. ते ज्ञानभण्डारना कार्यवाहकोनो ऋणस्वीकार करुं छु.
सूतक चोपाई ।। अथ सुतकनी चोपई लख्यते ।।
श्रीसरसती देवी समरू माय, सहगुरुने बलि लागुं पाय । विचारसार ग्रंथथी हुं कहुं, ते परमारथ जांणों सहु ॥१॥
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