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अनुसंधान-२४ खइर महिर की वात न छूझइ, युं भावइ त्युं बोलइ बहुत करी मइ दिलकुं विच्यारा, हीर धर्म नही तोलइ बे ॥११॥ मइ फुरमान इउ फुरमाया, यो च्याही सो दीआ राउ विलतपइंडे किउं आ(?) सो जन कच्छूअ न लीआ ॥१२॥ हीर कहत पतिशाह-मुगामणि, हम योगी वइरागी खेल स्वीडोल(?)हयगय सुखासन उन तई हूए त्यागी बे ॥१३॥ हम व्यवहारी वाणि पुत्र घरि मांगी खाणा खावइ रागी जमात (?)मा नही तनमइ वांकी वाट न पावइ बे ॥१४॥ पातशाह बहु वसु हेम धन पेसकसीमइ छोड़े हीरबीजइसूरी कहि हजरत उनमइ कच्छूअ न लोडुं बे ॥१५॥ मोती लाल पावि(मणि?) परवाले, देतइ कछूअ न लीना गाजीशाह कहि सब यूठे हीरा खरा नगीना बे ॥१६॥ यो उसाफ सुण्या था तेरा सो मइंनय तुं देख्या पाकदिखें पूरा वइरागी उर न को जगि पेखा बे |१७|| हृदि अवंसा धरति छत्रपति यो च्याहीइ सो लीजि मांगू को दिन जीउ न मारि ता फुरमान सो दीजि बे ॥१८॥ पेस कीआ जही तुम मांग्या हीरविजइसूरि लेवइ शाह खिताब श्रीजगत्रगुर का पेमु करी तव देवइ बे ॥१९।। कोऊ मांगइ देस नवेरे दाम जरीना जोई हीरि उमरयना(?)वर मांगी उर न अइसा कोई बे ॥२०॥ शाह कहि हम ही थइ तेरे, च्यारि खंड मइ थाणां मई हुं गुणित देसका साहिब, तु त्रिभुवन सुलतानां बे ॥२१॥ सीस धरी फुरमान मेवडे, देस विदेसुं धावइ उहां के खान मलिक उंबरे सो शिर परिई चढावइ बे ॥२२॥
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