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अनुसन्धान ४४
आनी टीका करतां वसुनन्दि कहे छे के प्रथम जिनना साधुओ स्वभावथी ज अत्यन्त भद्रिक तथा सरल हता त्यारे अन्तिम जिनना साधुओनो मोटो भाग वक्रस्वभावी छे.
मूलाचारनो हिन्दी अनुवाद करतां आर्या ज्ञानमती कहे छे युगलिकोनी भोगभूमिज परिस्थिति पूर्ण थई रही हती अने कर्मभूमिज परिस्थितिनी शरूआत हती तेथी लोकोने हजु व्रतोना पालननी पूर्ण समजण न हती, माटे तेओने अतिचार लाग्यो होय के न लाग्यो होय, छतां प्रतिक्रमण करवु आवश्यक हतुं. ज्यारे अन्तिम तीर्थङ्करना कालमां पञ्चमकाल-कलिकाल नजीकमां ज हतो अने जीवोनां चित्त वक्र होवाथी तेओ पोतानां दोषोने जोई शकता नहोता माटे तेओने माटे प्रतिक्रमण अनिवार्य गणायुं.
यापनीयों पण दिगम्बरोनी आ वात साथे सहमत छे एवं विजयोदय टीकाथी जणाय छे. अपराजितसूरि अन्ध अश्वनी चिकित्साना दृष्टान्तथी प्रतिक्रमणनो नियम समझावे छे. एक माणसनो घोडो बिमार हतो. वैद्ये तेने, नजीकना पर्वत पर ऊगती एक वनस्पति, चिकित्सारूपे घोडाने खवडाववानुं कर्तुं. पण ते व्यक्तिने ते वनस्पतिनी ओळखाण नहोती. तेथी ते त्यां ऊगेली घणी वनस्पतिओ लई आव्यो अने ते बधी ज घोडाने खवडावी दीधी तो घोडो साजो थई गयो. अहीं प्रथम अने अन्तिम तीर्थङ्करना साधुओ माटे प्रतिक्रमण वनस्पतितुल्य छे. जो तमने खबर न होय के चोक्कस कया अतिचारोनुं प्रतिक्रमण करवू तो बधा ज शक्य मानसिक, वाचिक तथा कायिक अतिचारोनुं प्रतिक्रमण करी लेवू.
हवे, श्वेताम्बर-दिगम्बर शास्त्रोमां प्राप्त थतां प्रतिक्रमण तथा पञ्चव्रत विशेनां निरूपणो युक्त ज छे, छतां श्वेताम्बर शास्त्रोमां आपेल सामयिक संयम तथा चाउज्जाम ने आश्रयीने अहीं बे प्रश्नो ऊभा थाय छ :
१. बधां व्रतोने व्यापी जनार सामायिक संयमरूप एक ज व्रतने, वचला २२ तीर्थङ्करना साधुओ जो सारी रीते समझी जता हता तो ते व्रतना वधु विशदीकरणनी शी जरूर हती ? अने
२. विशदीकरण वखते पण, जो प्रथम तीर्थङ्करना साधुओ माटे पांच व्रतो राख्यां ज हतां तो २२ तीर्थङ्करना साधुओ माटे केम चार ज व्रत कह्यां ?
बीजा शब्दोमां कहीए तो, जो व्रतोनो विस्तार करवो ज हतो तो
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