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March-2004
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योगी सोई जे जोग अभ्यासइ, फूटी कुडी नवि राखइ पासइ । चित्त लगाई निरंजन ध्यावइ, भलो रे बूरो सुनी खेद न पावइ ॥२५॥ जाकइ जोरूसुं नाहीं टूक संग, एक निरंजन सेती रंग । खोजी थई बहु खोज करायो, साचो योगी कोई नजरि न आयो ।।२६।। बुहडि बोलइ इयु अकबरभूप, जोई जोउं सोईउ रप्तरूप । सेष दरवेस सोफी इयुं चालइ, हीक कही उर कूकूत उच्छालइ ।।२७।। भंगि खाई होवइ अति लाल, सिंखला पहइरी दीसइ विकराल । नामि योगी फुनि याहि ज भेष, नामि संन्यासी सन्यास न रेख ॥२८॥ खाजई पीजइ कीजइ तीय भोग, बोधा बोलइ जगि एह ज योग । पंच वखत नमाज गूजारइ, छुरी लेई बहु जीव सिंहारई ॥२९॥ काजी मुलां कहइ सुणो साह, खुदाई एही फुरमाया राह । साही कहइ ए सब ही जूठे, खुदा थकी चालइ यु अ पूठे । इयुं करतां किउं पाईइ दीन, जाको मन दुनीआसुं लीन ॥३०॥
दुहा ॥ ए सब जब जूठे कीए, वडवखती कहइ मीर । दुनीआं दीपक एक मई, श्रवणि सुंण्यो गुरु हीर ॥३१।। सो हम वेग बोलाइआ, देख्या तास दीदार । कहणी-करणी साचउ, योगीसर सिंणगार ॥३२॥
ढाल ॥ राग गोडी ॥ ताकी करणी बहुत कठिन, किन पिं कही जाइ । जीव न मारइ जूठ नाही, स्त्री सहु जइसी माय । कुडी न राखइ आसपास, एक करइ खुदायकी । लेत नाही कछु गयर दीउ, प्रवाह न किसकी ॥३३॥ खाना खावइ एक बेर, पीवइ ताता नीर बीजा तमासु खेल नाही, ध्यावइ एक पीर ।
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