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फेब्रुअरी २०११
करणांश' बनतो होय तो चाक्षुष अने मानस प्रत्यक्षमां करणांश कोण ? २ तेओओ आना जवाब तरीके लब्धीन्द्रियनी स्वविषयने ग्रहण करवा तरफनी उन्मुखताने रजू करी छे. आ उन्मुखताने आपणे चक्षु- मनना स्वविषय साथेना वैज्ञानिक सम्बन्धरुप समजी शकीओ. अने ओ रीते ज्ञानबिन्दुगत निरूपण पण प्र.मी. साथै संवादी छे.
२. अक्षार्थयोग अने अवग्रह वच्चे दर्शन थाय छे.
तमाम तार्किको आवुं ज निरूपण करे छे.३ वि. भाष्यनी रचना पूर्वे पण दर्शनने बदले ‘आलोचन' शब्द वापरीने कोई अवुं ज निरूपण करतुं हशे ओम तेमां करेली आ मतनी समालोचना परथी जाणी शकाय छे. ३. अवग्रह आन्तर्मौहूर्तिक होय छे.
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अन्य कोई तार्किक ग्रन्थमां साक्षात् शब्दोमां आवुं निरूपण नथी मळतं; कारण के अवग्रहादिना काळमानने दर्शावती वि. भाष्यनी "उग्गह इक्कं समयं..." अ गाथा (३३३) अटली प्रसिद्ध अने मान्य हती के अवग्रहने अमां देखाडेला ओक समयना काळमानने स्थाने आन्तर्मौहूर्तिक कहेवानुं जल्दी सम्भवित नहोतुं. पण अवग्रहमां सामान्यने बदले विशेषोनुं ग्रहण माननारा तार्किको अने अन्तर्मुहूर्तकालीन समजता ज होय अ जाणी शकाय तेवुं छे.
४. ईहा संशयपूर्वक ज होय छे.
आ वात बधा तार्किक ग्रन्थोने संमत छे. ५ विचारवा जेवी वात अ छे के संशयनो ज्ञानोत्पत्तिना क्रममां समावेश केम नथी ? प्र.मी. नी जेम प्र.न.
१.
कारण असाधारण होय अने पोते कोइकने जन्मावी सेना द्वारा पोताना निर्धारित कार्यने पूरुं करतुं होय ते कारण 'करण' कहेवाय छे। अने आ करणथी जन्य तेमज कार्यनी उत्पादक वस्तु 'व्यापार' कहेवाय छे. व्यञ्जनावग्रह, अर्थावग्रह - ईहारूप व्यापार द्वारा अपायरूप फळ पेदा करतो होवाथी से करण गणाय छे.
२. “ननु व्यञ्जनावग्रहः .. नाऽप्राप्यकारिणोश्चक्षुर्मनसोरिति कः करणांशो वाच्यः ? - ज्ञानबिन्दु परि. ३८
३. जुओ पृ. २१-टि. २, पृ. २६-टि. २
४. गाथा २७४ - २७९
५.
“संशयपूर्वकत्वादीहायाः " - प्र.न. - २.११, “सति हि संशये ईहायाः प्रवृत्तिः" त.वा.
१.१५.१३