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फेब्रुआरी २०११
अकसरखो नथी होतो ते अनुभवसिद्ध छे. आपणने घणीवार त्रीजा पगथियानो 'कागडो बोले छे.' अवो ज सीधो अपाय - शब्दोल्लेखवाळो बोध थाय छे. तो घणीवार 'शब्द छे - अवाज आवे छे' अवो अपाय पण थाय छे, जे बीजा पगथियानो बोध छे. 'कंइक छे' ओवो प्रथम पगथियानो बोध पण शब्दोल्लेख साथे, विशेषो न नक्की थई शके तो, अपायमां भासित थई शके छे. आथी नक्की थाय छे के शब्दोल्लेखवाळो प्रथम बोध - अपाय आटला ज विशेषोना उल्लेखवाळो होय अq नियमन शक्य नथी. अने जो जे शक्य न होय तो अपायथी ओक पगथिया जेटलो नीचलो बोध - अर्थावग्रह आटलो ज बोध करे ओ नियमन पण शक्य नथी बनतुं. ढूंकमां 'कंइक छे' अवो पण अवग्रह थई शके छे अने 'शब्द छे' अवो पण अवग्रह थई शके छे. ओ ज रीते प्रथम अपाय 'शब्द छे' ओवो पण थई शके छे (-अवग्रह 'कंइक छे' अवो होय तो) अने 'कागडो बोले छे' ओवो पण थई शके छे (-अवग्रह 'शब्द छे' अवो होय तो). अवग्रह अने अपाय बन्ने 'कंइक छे' ओवा पण कोईकवार होय छे.
हवे आपणे ध्यान आपीशुं तो जणाशे के महदंशे आपणे अवग्रहमां ज बीजा पगथिया सुधी पहोंची जता होईओ छीओ; अने ते पण अटले नक्की थाय छे के 'गुलाब महेके छे' (-कंइक छे → गन्ध छे → गुलाबनी गन्ध छे), 'घडो छे' (- कंईक छे → रूप छे → घटरूप छे) अवो त्रीजा पगथियानो ज शब्दोल्लेखसहितनो बोध आपणने प्रथमथी जणाय छे. तार्किकोओ आ महदंशे थनारी प्रक्रिया अनुसार ज निरूपण करवानुं उचित धार्यु होवू जोइओ. अने ओटले तेओओ पहेला पगथियानो बोध दर्शनमां, बीजा पगथियानो बोध अवग्रहमां अने त्रीजा पगथियानो बोध अपायमां गोठव्यो होई शके. पण तेनो अल्पांशे थनारी 'अवग्रहमा पहेला पगथियानो बोध अने अपायमां बीजा पगथियानो बोध ओवी' प्रक्रिया के तदनुसार आगमिको द्वारा करवामां आवता निरूपण साथे कोई विरोध नथी.
अत्रे विषयान्तर थतुं होवा छतां ओक वात नोंधवी रही : मतिज्ञानना बबादि भेदो कई रीते घटे ? ओम पूछवामां आवे तो आगमिको कहेशे के व्यञ्जनावग्रह अने अर्थावग्रहमां उपचारथी' अने ईहाथी मांडीने वास्तविकताओ