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अनुसन्धान-५७ उम्बरवाडिपार्श्वनाथ प्रशस्ति
- मुनि सुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ
सुरत शहेर एटले जिनालयोथी मण्डित एक धर्मनगरी. जेमां प्राचीनता, ऐतिहासिकता, शिल्पस्थापत्य के कलाकारीगरी ए दरेक दृष्टिए विविधता पण जोवा मळे. अहिं आपणे सुरतनाज सौथी प्राचीन जिनालय सन्दर्भे वात करवी छे. किंवदन्ती प्रमाणे अहिं गोपीपुरमा एक कुमारपाळ महाराजाए बंधावेलु देरासर हतुं, जो के मळतां ऐतिहासिक प्रमाणोने आधारे गोपीपुरा- उमरवाडी पार्श्वनाथ भगवाननुं देरासर एटले सुरतनुं सौथी प्राचीन जिनालय.
सं. १६५६मां कवि नयसुन्दरे रचेला श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवानना छन्दमां आ तीर्थनां नामनो सौ प्रथमवार उल्लेख मळे छे. त्यार पछी बीजी अनेक रचनाओमां उमरवाडी पार्श्वनाथ भगवान सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त थाय छे. प्रस्तुत कृति उमरवाडी पार्श्वनाथना जिनालयनी प्रशस्ति रूपे छे. कविए कृतिमां केटलीक ऐतिहासिक माहितीओ पूरी पाडी छे जे आपणे जोइशुं. कृति परिचय :
कृतिनी शरूआतना २ श्लोकमां कविए पार्श्वनाथ प्रभुनी स्तुति करी छे. पछीना श्लोकमां तापीना तट उपर रहेल सुरतबन्दरने लावण्ययुक्त स्त्रीना चक्षुसमान सरखावायुं छे. उपकेशवंशनी वृद्धशाखाना माणिक्यादि मोंघां रत्नोना व्यापारनी स्पृहावाळा ------- श्रावको वडे प्रभुनी अर्चना कराय छे तेवो भाव चोथा श्लोकमां छे. पांचमा श्लोकना पूर्वार्धमां कविए प्रतिष्ठानी संवत्, मासादि गुंथ्या छे. ज्यारे उत्तरार्धमां प्रतिष्ठित थनार पार्श्वनाथ भगवानने प्रार्थना करी छे. अहीं प्रश्न ए थाय के प्रतिष्ठित थनार पार्श्वनाथ भगवान कया ? उमरवाडी पार्श्वनाथ के अन्य ? मानो के आपणे उमरवाडी पार्श्वनाथने प्रतिष्ठित थनारा पार्श्वनाथ मानीए तो देरासरनो संपूर्ण जीर्णोद्धार थयो होइ मूळनायक उमरवाडी पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठा करवानो प्रसंग आवे एम मानवू पडे. अने जो सम्पूर्ण जीर्णोद्धार होय तो अन्य पण उत्थापित करेला प्रतिमाने प्रतिष्ठित कर्या होय. आम विचार्या प्रमाणे बन्युं होय तो कविए जे 'बिम्बं' शब्द एकवचननो