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डिसेम्बर २००७
हर्षित हुआ । साह जिणदास के पुत्र साह कुंवरजी के घर आचार्य ने चातुर्मास किया । अनेक प्रकार के धर्मध्यान हुए । मासक्षमण आदि अनेक तपस्याएं हुई । अनेक मार्ग - भूलों को मार्ग पर लाये । भादवें के महीनें में वहाँ के समाज ने अत्यधिक लाभ लेते हुए पुण्य का भण्डार भरा । तपागच्छाधिपति श्री आणन्दविमलसूरि के शिष्य विजयदानसूरि दीर्घजीवि हों ।
श्री लक्ष्मण एवं माता भरमादे के पुत्र ने दीक्षा लेकर जग का उद्धार किया । भीमकवि कहता है कि इनका गुणगान करने से संसार सागर को पार करते हैं ।
इससे ऐसे प्रतीत होता है कि आचार्यगण विशिष्ट कारणों से श्रावक के निवास स्थान पर भी चातुर्मास करते थे ।
रचना के शेष भाग में आचार्यश्री के गुणगौरव, साधना, तप-जपसंयम का विशेष रूप से वर्णन हैं ।
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विजयदानसूरि के माता-पिता के नामों का उल्लेख तपागच्छ पट्टावली में प्राप्त नहीं है, वह यहाँ प्राप्त है ।
भक्तजन इसका स्वाध्याय कर लाभ लें इसी दृष्टि से यह भास प्रस्तुत किया जा रहा है ।
श्री विजयदानसूरि भास
विणजारा रे सरसति करउ पसाउ |
श्री विजयदानसूरि गाईइ गच्छनायकजी रे ॥वि. १ ॥
गुण छत्रीस भण्डार जंगम तीरथ जाण ॥ वि. २ ॥ आव्यो मास वसन्त व्याहार विदेश गुरु करई ॥ग. वि. ३ ॥ जोया देश विदेश लाभ घणउ गुजर भणी ॥ग. वि. ४ ॥ मुगति थी के क... पूंजी पञ्च महाव्रत भरी ॥ ग. वि. ५ ॥ पोठी वीस समाधि दुविध धर्म गुणी गुल भरी ॥ग. वि. ६ ॥ सुमति गुपति रखवाल ताहरइ आठइ साथी अति भला ॥ग. वि. ७॥ जयणा शंबल साथी जीता दाणी करवाय ते दोहिल्या ॥ ग.वि. ८॥ संवत् सोल बार नटपद्र नयर पधारिया ॥ग. वि. ९ ॥
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