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अनुसन्धान ४२
इस कृति में सम्राट अकबर का प्रसङ्ग नहीं है। अतः यह रचना संवत् १६३९ के पूर्व की होनी चाहिए ।
दूसरी सज्झाय के रचनाकार कौन हैं ? अस्पष्ट है । गाथा ९ के अन्त में लिखा है :- 'श्री विशालसुन्दर सीस पयम्पइ' इसके दो अर्थ हो सकते हैं । श्री हीरविजयसूरि के शिष्य विशालसुन्दर ने इसकी रचना की है । अथवा विशालसुन्दर के शिष्य ने इसकी रचना की है । यह कृति भी सम्राट अकबर के सम्पर्क के पूर्व ही रचना है ।
इसमें १० गाथाएं हैं । प्रत्येक में आचार्य के गुणगों का वर्णन हैं। गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है :- श्री हीरविजयसूरि जैन शासन के सूर्य हैं, गुण के निधान हैं, तपागच्छसमुद्र के चन्द्रमा हैं । विनयपूर्वक मैं उनके चरणों को नमस्कार करता हूँ । देवेन्द्र के समान ये गच्छपति हैं । अपने विद्यागुण से इन्द्रजेता हैं । जग में जयवन्त हैं, महिमानिधान हैं, निर्मल नाम को धारण करने वाले हैं । शास्त्रसमूह के जानकार हैं । यम, नियम, संयम, विनय, विवेक के धारक हैं । लक्षणों से सम्पन्न हैं । सर्वदा ज्ञान का दान देते हैं । अपयश से दूर हैं ! सुख-सौभाग्य की वल्ली हैं । नयनाादक हैं। गुणों के धाम हैं। यशस्वी हैं ! काम को पराजित करने वाले है । अन्य दर्शनी भी इन्हें देखकर आनन्द को प्राप्त होते हैं। सूत्र सिद्धान्तों के जानकार हैं । नरनारी व राजाओं को प्रतिबोध देने वाले हैं । क्रोधरहित हैं । उपशम के भण्डार हैं । शत्रुरहित हैं । भव्य जनों के सुखकारी हैं । गुरुप्रसाद से परमानन्द के धारक हैं । ऐसे पञ्चाचारधारक बृहस्पतितुल्य श्री हीरविजयसरि जब तक मेरु पर्वत, गगन, आकाश, दिवाकर विद्यमान हैं, तब तक जिनशासन का उद्योत करें । दोनों सज्झायें प्रस्तुत हैं :
____ श्री हीरविजयसूरि सज्झाय प्रणमी सन्ति जिणेसर राय, समरी सरसति सामिणि पाय । थुणसिउं मुझ मनि धरी आणन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द ॥१॥ श्री आणन्दविमलसूरीसर राय, श्री विजयदानसूरि प्रणमुं पाय । तास सीस सेवइ मुनिवृन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द ||२||
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