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अनुसंधान-१९
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श्रीश्रेयांसजिनस्तवन बीदलीनी ए देशी ॥
श्री श्रेयांस जिन सुगुण सोभागी, ए तो जोतां भावठि भागी रे । सुणि प्रभु अंतरजामी, तुम्हें लीधो शिवपुरीनो राज, 'तुमे सार्यां पोतानां
काज रे ॥ सु० ॥१॥
उपगारी जे कहवाइ 'ते तो सहुने सरिखां थाइ रे सु० । एकने घणु एकने ओछु ते प्रीती जणाइ छोच्छी रे सु० ॥२॥
बिरुद तुम्हारो गरीबनिवाज सेवकनी वधारो लाज रे सु० । तुम्हे महिमासागर ईश तुम्हें दूर करी सवि रीस रे सु० १३।।
ओछा रे केरो नेह जेहवो खारीनो दीसे त्रेह रे सु० । चंद चकोरनी प्रीति सुहावे तिम प्रभुजीश्युं गुण गोठ भावेरे सु० ॥८॥
श्रीजिनचंद्र करुणानिधि हवे प्रगटी रिद्धि ने सिद्धि हो सु० । हीरसागर प्रभु गुण गाया मनह मनोरथ पाया हो सु० ॥५॥
इति श्री श्रेयांसनाथ गीतं ॥ १. 'तुमे' नथी २. 'तेतो' नथी ३. चंद्र
श्रीवासुपूज्यजिनस्तवन थारा मोहलां उपर मेह ए देशी ॥
'वसुपूज्यसुत द्यो सेवा प्रभु तुम पयतणी हो लाल प्र० । अवर सेवा नावई दाय के चित्त चाहुं तुम भणी हो लाल चि० ॥
भव अनंत मझार साहिब मुझ मिल्या हो लाल सा० । भवभवना संताप दुःख ते सवि टल्या हो लाल दु० ॥१॥
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