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अनादि निगोद मझार स्वामी हुं वस्यो हो लाल स्वा० । मोह मदिरानी छाक थकी विषये धस्यो हो लाल वि० ॥
पुद्गलतणो स्वभाव ते रमण मुझ मन गमे हो लाल र० । जिहां तिहां इंद्रि स्वाद ते रिदय चित्त तिहां रमे हो लाल रि० ॥२॥
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एहवुं मुझ स्वभाव ते साहिब मांहरो हो लाल सा० हिवइ मुझ मलीयो निर्यामक साथ ज ताहरो हो लाल सा० ॥
अनंतचतुष्टय श्रेणि प्रभुजीना गुण घणां हो लाल प्र० । श्रीजिनचंद्र हीर नमें पय तुम तणां हो लाल न० ॥३॥
इति श्री वासुपूज्यजिन स्तवनम् ।
१. वसुपूज
( श्रीविमलनाथस्तवन )
श्री रामपुरा बाझारमां ए देशी ॥
March-2002
विमल जिणेसर ध्याईई हीयडे हरख भराय मेरे लाल ।
श्यामा राणीइं जनमीओ इन्द्राणी मिलि गुण गाय मेरे लाल । वि० १ ॥
विमल जनम करवा भणी सेवो विमल जिणंद मे० । मुख सोहे पूनिम चांदलो हरे संकट रयणि दिणंद मे० ॥ वि० २ ॥
विमलज्ञान ते जाणीइ जे सेवे एक चित्त मे० । विमल करें भवि जीवनें जे भगति युगति करे नित्त मे० ॥ वि० ३ ||
निमित विमलें अनुभव 'सधिरं विमलपदे होइ ध्येय मे० । सुख अनंतु प्रगटे तिहां प्रगटे सर्वज्ञ ज्ञेय मे० ॥ वि ॥४॥
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