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________________ श्रीहीरसागर कृत स्तवन चोविशी । -सं. मुनिजिनसेनविजयजी लींबडी ज्ञान भंडारनी ९ पानांनी आ प्रत चोवीश जिनेश्वर भगवंतनां स्तवनोनी छे. आ चोवीशी अप्रगट होवानुं जणायुं छे, आना कर्ता-रचयिता तरीके "श्री जिनचंद्र सूरीश्वर तणो हीरसागर गुण गायोजी" ए पंक्तिमां खरतरगच्छीय श्री जिनचंद्र सूरिजीना शिष्य हीरसागरजी छे तेवो स्पष्ट निर्देश छे. रचना संवत के लेखन संवत जणावी नथी परंतु प्रति उपरथी आनो लेखनकाल सत्तरमा सैकानो पूर्वार्ध गणी शकाय, स्तवनोमां शब्दो-उपमाओ व. खूबज आनंददायी छे. लीबडीना भंडारमाथी ज आ स्तवनोनी बीजी पण एक प्रति प्राप्त थई छे. ते प्रमाणमां वधु अर्वाचीन छे. तेमां मळता पाठांतरो अहीं पादटीपमां नोंध्या छे. श्री शारदायै नमः । श्री ऋषभजिन स्तवन अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ए देशी ॥ ऋषभजिणेसर साहिब सांभलो, सेवकनी अरदासोजी । मनडुं मोद्यं रे प्रभु चरणांबुजे, प्रभु पूरो मननी आसोजी ॥१॥ ऋ. | हुं सहती रे घणां दिवसनी, सफल थई मुझ आजोजी । मन-तन विकस्यां रे मालती फुल ज्यु, प्रभु सेवे अविचल राजोजी ॥२।। ऋ.॥ मन प्रभु चरणे रे विलगुं माहरु, जिम सुत मातने पासोजी । तिम प्रभु ध्याने रे सुख पामुं सदा, प्रगटे घणुं सुख वासोजी ॥३।। ऋ. || सेर्बुजा केरारे प्रभुजी राजीया, उद्धर्या केई अनाथो जी । सरणागत जाणी स्वामी उद्धरो, किम छोडुं अविहड साथोजी ॥४॥ ऋ.॥ सात राज जइरे अलगा तुमे वस्या, पण भगते चित्त हजूरो जी । करुणारस अमृत पीऊं सदा, जिम पा, 'सुख भरपूरो जी ॥५||ऋ.।। जे जेमने रे जे जेहने मन वसे, ते तेहने मन पासोजी । मुझ मन प्रभुजी रे तुमे वसी रह्यां, आपो अविचल गुण वासोजी ॥६॥ ऋ.।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229369
Book TitleStavan Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinsenvijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size368 KB
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