________________
श्राविकाद्वयव्रतग्रहणविधि ||
अनुसन्धानना आरम्भना कोई अंकमां 'श्राविकाव्रतग्रहणविधि' नामे एक कृति प्रगट थई हती. तेना जेवी ज बे रचनाओ अत्रे प्रस्तुत छे. खम्भातना ताडपत्र भण्डारनी, क्र. ११६ धरावती, बृहत्संग्रहणीनी प्रत छे. तेमां पत्र ३५४४मां आ बन्ने पाठ छे. संवत् १२८७ मां अणहिलपुर पाटणनी बूटडि नामनी श्राविकाए तथा नागपुरनी लखमसिरी नामक श्राविकाए, श्रावकधर्मोचित बार व्रतो उच्चरेलां. ते बन्नेए कया व्रतना कया नियमो स्वीकारेला तथा केवीकेवी छूट राखेली, तेनी नोंध आमां छे. आधुनिक जैनो पण आवां व्रतो ले त्यारे तेनी टीप ( नोंधपोथी) लखी राखे छे. १३ मा सैकामां लखाती आवी टीप प्राकृत भाषामा अने ते पण गाथाबद्ध लखाती हशे, ते आ जोतां जाणवा मळे छे. श्राविकाओ पोते अभ्यासी होय अने आम लखती होय एम पण सम्भवित छे, अने तेमना आशयने अनुरूप गाथाओं व्रतदाता गुरुजनो बनावी आपे ते पण शक्य छे. अलबत्त, आ गाथाओ समजवा जेटलो अभ्यास तो ते बहेनोनो होय ज.
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
बूटडि श्राविकानी नोंध ६१ गाथा प्रमाण छे, अने लखमसिरीनी नोंध ४१ गाथानी छे. अलगअलग गामोनी बे बाईओनी नोंध एकसाथे मळे छे तेनो अर्थ एम पण थाय के बन्ने कोई मिषे एक स्थाने एकत्र थई होय अने साथे व्रत लीधां होय. अथवा तो कोई गुरुजने पोतानी पासे व्रत लेनार आ बन्ने श्राविकाओनी व्रतनोंध पोतानी पोथीमां ऊतारी राखी होय.
१२ व्रतोना नियमोनी आ नोंधमां आवतां विधि-निषेधोनो अभ्यास करनारने ते समयना सामाजिक वातावरण अंगे, धंधा - व्यवसाय तथा रीतरिवाजो अंगे घणुं जाणवा मळे तेम छे. केटलाक शब्दो पण नवा तेम रसप्रद होवानुं जणाय छे.
Jain Education International
वर्षो पूर्वे लखी राखेल आ बे रचनाओ अत्यारे तो यथावत् अहीं प्रकट करवामां आवे छे.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org