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ऋषभतर्पण : जैन क्रियाकांड विषयक एक सरस कृति
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
दरेक धर्मसंप्रदायने पोताना आगवा क्रियाकांडो अने आचार-अनुष्ठानो होय छे. नर्या ज्ञानमार्गनी वातो धर्म-संप्रदायने दीर्घायु नथी आपी शकती. धर्मनो आंतर-प्राण भले ज्ञानमार्गमां होय, पण तेने उल्लसित-पल्लवित करनार अने दीर्घकाळ पर्यंत लोकहृदयमां जीवंत राखनार तत्त्व ते तो ते धर्मसंप्रदायनां कियाकांड अने आचार-अनुष्ठानो ज, एम कहेवामां अजुगतुं नथी.
भारतीय संस्कृतिने संबंध छे त्यां सुधी, धर्मसाधनानो आदर्श आत्मसाक्षात्कार अने मोक्षप्राप्ति छे. दरेक भारतीय धर्मसंप्रदाये, एक या बीजा रूपमा, आ आदर्शने स्वीकार्यो छे. आम छतां, आ आदर्शने सिद्ध करवा माटेनां साधनो, उपायो के मार्गो विविध होय छे. ज्ञानयोग, कर्मयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग अने एवां विविध साधनो द्वारा आ आदर्श सुधी पहोंची शकाय छे, ऐम आपणा धर्मपुरुषोए कडुं छे.
___आमां पण, ज्ञानयोग अने ध्यानयोग ए तो बहु विकसित आत्मदशावाळा साधकोना वशनां साधन छे. जनसाधारण जेनुं आलंबन लईने धर्मसाधना कर्यानो परितोष पामी शके, तेवां साधनो तो कर्मयोग अने भक्तियोग ज. आ बन्ने योगो एवा छे के जे बहोळा लोकसमूहना चित्तने आकर्षी शके छे, अने "दुःखतप्त तथा अपायबहुल जीवनमां पण, आ योगो द्वारा, धर्म सुपेरे अने विना कष्टे साधी शकाय छे" एवी धर्माभिमुखता लोकचित्तमां प्रेरे छे. अथी ज, जेम अन्य धर्मोना, तेम जैन धर्मना आचार्योए पण धर्मसाधनाना प्रथम अने अत्यावश्यक पगथियालेखे क्रियामार्ग अने भक्तियोग उपर, भले पोत-पोतानी आगवी परिभाषामां, पण, घणो भार मूक्यो छे. अटलं ज नहि, पण ए क्रियामार्ग अने भक्तिमार्गनी साधना माटे तेमणे विविध धार्मिक क्रियाकांडो अने अनुष्ठानो पण रच्यां छे.
गृहस्थोचित क्रियाकांडोमां एकबाजु जैन परिपाटी प्रमाणे गर्भाधानसंस्कारादि सोळ संस्कारोना विधि मळे छे. तो वीजी बाजु देवपूजाथी मांडीने शान्तिक-पौष्टिक विधानो तथा मंत्र-यंत्रगर्भित अनुष्ठानो पण प्राप्त छ. एनी
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