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अनुसन्धान-३१
बृहद्वृत्ति में अनेकों उद्धरण प्राप्त होते हैं । कई-कई उद्धरण तो लघु कृति होने पर पूर्ण रूप से ही उद्धृत कर दिये हैं । मूल के पद्य २ और ३ से ५ की व्याख्या करते हुए ३ स्तोत्र उद्धृत किये हैं- १. आचार्य जिनपतिसूरि रचित उज्जयन्तालंकार-नेमिनाथस्तोत्र, २. श्रीजिनेश्वरसूरि रचित गौतमगणधरस्तव, ३. श्रीसूरप्रभरचित गौतमगणधर स्तव । ये तीनों स्तोत्र प्रस्तुत करने के पूर्व इनके रचनाकारों का भी संक्षेप में परिचय देना आवश्यक है ।
श्रीजिनपतिसूरि - दादा जिनदत्तसूरि के प्रशिष्य और मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के पट्टधर श्रीजिनपतिसूरि का समय विक्रम सम्वत् १२१० से १२७७ तक का है । विक्रमपुर (जैसलमेर के समीपवर्ती) माल्हू गोत्रीय यशोवर्धन सुहवदेवी के पुत्र थे । इनका जन्म वि.सं. १२१० चैत्र कृष्णा ८ को हुआ था । १२१७ फाल्गुन शुक्ला १० को जिनचन्द्रसूरि ने दीक्षा देकर इनका नाम नरपति रखा था । सम्वत् १२२३ भाद्रपद कृष्णा १४ को जिनचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हो जाने पर उनके पाट पर सम्वत् १२२३ कार्तिक शुक्ला १३ को जिनदत्तसूरि के पादोपजीवि जयदेवाचार्य ने नरपति को स्थापित किया था और इनका नाम जिनपतिसूरि रखा था। आचार्यपदारोहण के समय इनकी अवस्था १४ वर्ष की थी । इनके लिए षटत्रिंशद वादविजेता विशेषण का उल्लेख अनेक ग्रन्थकारों ने किया है किन्तु खरतरगच्छ की गुर्वावली में कुछ ही वादों का उल्लेख प्राप्त होता है। सम्वत् १२७७ आषाढ़ शुक्ला १० को इनका स्वर्गवास हुआ था । जिनपतिसूरि प्रौढ़ विद्वान् एवं समर्थ साहित्यकार थे । इनके द्वारा प्रणीत १. संघपट्टक बृहद्वृत्ति, २. पञ्चलिङ्गी प्रकरण बृहद्वृत्ति, ३. प्रबोधोदयवादस्थल तथा आठ-दस स्तोत्र प्राप्त
१. प्रस्तुत उज्जयन्तालंकार-नेमिजिनस्तोत्र १० पद्यों का है, वसन्ततिलका छन्द में रचित है और इसमें भगवान् नेमिनाथ के पञ्च कल्याणकों की भाव-गर्भित स्तुति की गई है ।
२. श्रीजिनेश्वरसूरि (द्वितीय) - मरोट निवासी भाण्डागारिक नेमिचन्द्र के ये पुत्र थे और इनकी माता का नाम लक्ष्मणी था । १२४५
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