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अनुसन्धान-५८
भावानुवाद :
१. जगतनां 'ज्ञानचक्षु'स्वरूप, मोह आदि १८ दोषरहित, समवसरणनी शोभाथी युक्त, प्रभावसम्पन्न, कल्याणकारी, सत्यना पक्षपाती, जडता-अज्ञानने दूर करनारा सभद्र(=रवि) श्रीस्तम्भनपार्श्वनाथ प्रभु जय पामो.
२. ज्ञानकिरणो द्वारा प्रजाने आह्लाद-प्रमोद आपनार, ज्ञानना आश्रय, इन्द्रोनां पण चित्तने आनन्द आपनार, सकलज्ञानकलाविराजमान श्री पार्श्वजिनचन्द्र अज्ञानतिमिरने दूर करो.
३. श्रावणसुद आठमना दिवसे सिद्धिपदने वरेला, नीरोगी, पोताना जन्मोत्सव द्वारा (पृथ्वी परना) प्राणीओने परम प्रमोद आपनारा, मङ्गलमूर्ति (मूर्तिमान्-साक्षात् मङ्गल) श्री पार्श्वप्रभु मङ्गलकारी थाओ.
४. कदाग्रह रहित जे भगवान दर्शनमात्रथी अतुल फल आपे छे. तथा कलाना भण्डार, प्रीतिकारी, सौम्यदर्शन अने बुधजनथी परिवरेला श्रीपार्श्वप्रभु तमने सद्बुद्धि आपो.
५. पुण्यप्रतापी ओवा जेओना प्रभावथी पुण्यात्माओने पोता- इष्ट सत्वरे सिद्ध थाय छे, देव-गण जेना चरणे नमे छे. एवा गी:पति (वाणीना स्वामी) श्री पार्श्वप्रभु वाणीनी प्रासादिकता आपो.
६. जेमनां नेत्रो उज्ज्वल कान्तिमान् छे, जेओ नागकुमार वगेरे (असुरो)थी पूजाया छे, काव्य (शुक्र)स्तुति योग्य, कर्मरज रहित, प्रबुद्ध ओवा श्री पार्श्वप्रभु तमारां व्यसनो-दुःखोने दूर करो.
७. उग्र ग्रहोनी साथे आवेल मन्द(शनि)समान छतां अमन्द (त्वरित) सुखदायक, उद्दाम प्रगटप्रभावी, विद्याधरो अने देवताओ ओ पोतानां भवनो विमानो निवासोमां लई जई जेमनी पूजा करी छे, विश्वसुखकारी दिव्यतेजोमय श्रीवामानन्दन पार्श्वप्रभु तमने सुख आपो.
८. मेघमालीओ करेला जल उपसर्ग समये जेमनुं शरीर जलमो आकण्ठ डूबी गयुं हतुं. तेथी अमृतपान करतुं होय तेवू मात्र मुख ज देखातुं हतुं - नीलकमल समान शोभतुं हतुं, तथा सत्-सत्यरूप चक्र के सज्जन